जागृत सा इक ख्याल और सौ-सौ सवाल.....
हवाओं में उन्मुक्त,
किसी विचरते हुए प॔छी की तरह,
परन्तु, रेखांकित इक परिधि के भीतर,
धूरी के इर्द-गिर्द,
जागृत सा भटकता इक ख्याल!
इक वक्रिय पथ पर,
केन्द्राभिमुख फिरता हो रथ पर,
अभिकेन्द्रिय बल से होकर आकर्षित,
उस धूरी की ओर,
उन्मुख होता रहता इक ख्याल!
जागे से ये हैं सपने,
ये ख्याल कहाँ है अपने वश में,
ख़्वाहिशें हजार दफ़न हैं सवालों में,
धूरी की आश में,
सवालों में पिसता इक ख़्याल!
जागृत सा इक ख्याल और सौ-सौ सवाल.....
हवाओं में उन्मुक्त,
किसी विचरते हुए प॔छी की तरह,
परन्तु, रेखांकित इक परिधि के भीतर,
धूरी के इर्द-गिर्द,
जागृत सा भटकता इक ख्याल!
इक वक्रिय पथ पर,
केन्द्राभिमुख फिरता हो रथ पर,
अभिकेन्द्रिय बल से होकर आकर्षित,
उस धूरी की ओर,
उन्मुख होता रहता इक ख्याल!
जागे से ये हैं सपने,
ये ख्याल कहाँ है अपने वश में,
ख़्वाहिशें हजार दफ़न हैं सवालों में,
धूरी की आश में,
सवालों में पिसता इक ख़्याल!
जागृत सा इक ख्याल और सौ-सौ सवाल.....