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Sunday 30 September 2018

खुमारियाँ

सुस्त लम्हों में, खुमारियों का है ये आलम....

खुश्क सी ये कैसी, चल रही है हवा,
वक्त, जैसे ठहर चुका है यहाँ,
मंद सी हो चली, सूरज की रौशनी,
मंद मंद बह रही, ये बयार भी,
सुस्त से हैं कदम, अधूरी है प्यास भी....

ठहरा सा ये लम्हा, ये उन्मुक्त से पल,
ठहरा सा है, वो बीता सा कल,
ठहरे से हैं, वो ही बेसब्रियों के पल,
गुजरता नहीं, सुस्त सा ये लम्हा,
जाऊँ किधर, कैद ये कर गया यहाँ....

इस पल ने, यूँ ही बांध रखे है कदम,
आकुल से हैं प्राणों के कण,
इक आहट सी, उठ रही है कहीं,
खोया हूँ मैं, इस पल में यहीं,
है माधुर्य सा, इन खुमारियों में कही....

सुस्त लम्हों में, खुमारियों का है ये आलम....

Monday 27 February 2017

फासलों मॆं माधूर्य

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग....

बोझिल सा होता है जब ये मन,
थककर जब चूर हो जाता है ये बदन,
बहती हुई रक्त शिराओं में,
छोड़ जाती है कितने ही अवसाद के कण,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मन को देती हैं माधूर्य के कितने ही एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....

अनियंत्रित जब होती है ये धड़कन,
उलझती जाती है जब हृदय की कम्पन,
बेवश करती है कितनी ही बातें,
राहों में हर तरफ बिखरे से दिखते है काँटे,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मखमली वो छुअन देती है माधूर्य के एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....

Tuesday 30 August 2016

माधूर्य

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग....

बोझिल सा हो जब ये मन,
थककर जब चूर हो जाता है ये बदन,
बहती हुई रक्त शिराओं में,
छोड़ जाती है कितने ही अवसाद के कण,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मन को देती हैं माधूर्य के कितने ही एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....

अनियंत्रित जब होती है धड़कन,
उलझती जाती है जब हृदय की कम्पन,
बेवश करती है कितनी ही बातें,
राहों में हर तरफ बिखरे से दिखते है काँटे,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मखमली वो छुअन देती है माधूर्य के एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....