Monday 18 January 2016

कोमल हृदय

दो निश्छल हृदय, नन्हे कोमल से,
मिल रहे वसुधा की हरियाली पर,
मन मष्तिष्क हैं अनन्त कल्पनाएँ,
कह देना चाहे बातें सारी मन की!

संवेदनाएँ बेजुवाँ असंख्य नन्हे से,
हृदय अनुभूति प्रकट करें तो कैसे,
निश्छल मन आस पलती नन्ही सी,
चल बैठ यहीं कर ले अपने मन की!

कुछ  तुम अपने  मन की कह लेना,
कुछ मैं अपने मन की भी कह लूँगा,
मतलब इन बातों का कोई हो ना हो,
इन बातों मे ही खुशियाँ जीवन की!

नन्हे हृदय की संवेदना ही एक भाषा,
कोमल मन की निष्कपट अभिलाषा,
दुविधाओं शंकाओं से परे निर्मल मन,
बस यही है मंत्र भावमयी जीवन की।

टूटा हृदय

अश्रुओं की अविरल मुक्त धार से अपनी,
अब क्युँ रोक रही हो राह उसकी?
मंडराते बादलों की तरह टूटा है हृदय उसका,
अश्रुबूँद क्या भर सकेंगे घाव उसकी?

टूटा हृदय बादलों सा नभ में व्याकुल मंडराता,
गर्जना कर व्यथा अपनी सबको सुनाता,
चीर जाती पीड़ा उसकी हृदय व्योम के भी,
निष्ठुर तुझे न आयी क्या दया जरा भी?

अब व्यर्थ किसलिए तुम पश्चाताप करती,
आँसुओं के सैलाब क्युँ बरबाद करती,
प्यास हृदय की बुझ चुकी खुद की आँसुओं से ही,
शेष बरस रहे अब झमाझम बारिश की बुंदों सी।

Sunday 17 January 2016

इंतजार प्यार का

जीवन के जिस मोड़ पे तन्हा छोड़ गए थे तुम,
देख लो आज भी उसी मोड़ पे तन्हा खड़ा हूँ!

दीवानगी मे मुझको जिस तरह भी चाहा तुमने,
मैं जिन्दगी को आज भी उसी तरह जी रहा हूँ !

कभी मूरत की तरह मुझको सजाया था तुमने,
प्यार मे उसी बुत की तरह अब मैं ढह रहा हूँ!

मेरी ज़िन्दगी में जीने की बस एक वजह हो तुम,
शिकायत मत करो कि मैं तुमसे दूर रह रहा हूँ!

चाहो तो मुझको आवाज देकर बुला लेना तुम,
इंतज़ार करता आज भी उसी मोड़ पे खड़ा हूँ!

शाम के स्वर

शाम के स्वर अब तक थके नही,
इन सुरमई लम्हों के कदम अभी रूके नहीं,
साधना के स्वरों से पुकारती ये तुम्हे।

ये लम्हे हैं सुनहरी चंपई शाम के,
गुजरते क्षितिज पर इस तरह,
जैसे सृष्टि के हर कण से,
मिलना चाहते क्षण भर ये।

तुम भी इनसे मिलने आ जाओ,
प्रीत की रीत वही तुम भी निभा जाओ।

ये संध्या है सुरमई मदहोशियों के,
अनथक छेड़ रहे सुर इस तरह,
जैसे धरा के कण कण मे,
भरना चाहते मीठे स्वर ये।

तुम भी धुन कुछ इनसे ले लो,
प्रीत के गीत वही तुम भी सुना जाओ।

साधना के स्वरों से रातों के तम हर जाओ ।

पिघलते शब्दों के नश्तर

पिघलते शब्दों के नश्तर,
स्वर वेदना के नासूर वाण बन,
छलनी कर जाते हृदय के प्रस्तर।

शब्दों मे होती इक कम्पन,
गुंजायमान करती वसुधा के मन,
जीवन की वीणा को ये छेड़ती निरंतर।

कम्पन गुम मेरे हृदय की,
शब्द वो पिघलते कहाँ अब मेरे मन,
ध्वनी के मधुर स्वर मिलते कहाँ परस्पर।

क्या कभी अब हँस पाऊँगा?
धुन हृदय प्रस्तर की क्या सुन पाऊँगा?
वेदना के वाण रह-रह चुभते हृदय पर।

पिघलते लम्हे

पिघलते लम्हों का बेचैन कारवाँ,
गुजरता रहा वक्त की आगोश से,
अरमाँ लिए दिल में हम देखते रहे खामोश से।

लम्हें फासलों से गुजरते रहे,
दिलों के बेजुबाँ अरमाँ पिघलते रहे,
आरजू थी गुनगुनाती पिघलती शाम की,
पिघलती सी रास्तों पे बस शाम ढ़लते रहे ।

पिघलते लम्हों का बेवश कारवाँ,
बस गुजरता गया कोहरों की ओट से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।

कोहरों की धूंध मे ये चलते रहे,
बेवश जज्बातों के निशाँ पिघलते रहे,
पिघलती रही शाम हसरतों के जाम की,
पिघलते नयनों से बस आँसू निकलते रहे ।

पिघलते लम्हों का तन्हा कारवाँ,
बस गुजरता गया वक्त की आगोश से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।

Saturday 16 January 2016

चिड़ियाँ का जीवन

उस छोटी सी चिड़ियाँ का जीवन कितना दूभर?

चातुर नजरों से देखती इधर-उधर,
आज काम बहुत से होंगे करने,
आबोदाना को उड़ना होगा मीलों,
मिटेगी भूख किस दाने से?
चैन की नींद कहाँ पाऊंगी?

दूर डाल पे बैठी छोटी सी चिड़ियाँ सोंचती!

फिर घोंसले की करती फिकर,
किस डाल सुरक्षित रह पाऊँगी,
तिनके कहाँ सजाऊँगी,
बहेलियों की पैनी नजर से,
दूर कैसे रह पाऊँगी?

उस छोटी सी चिड़ियाँ को भविष्य का डर?

आनेवाली बारिश की फिकर,
आँधियों मे बिछड़ने का डर,
डाली टूट गई थी पिछली बार,
घौसले हो गए थे तितर बितर,
अन्डे कैसे बचाऊँगी?

उस छोटी सी चिड़ियाँ का जीवन कितना दूभर?