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Thursday, 3 December 2020

आवाज

पुकारती ही रहना!
वही आवाज! साज थे, जो कल के मेेेरे,
वहीं, इस शून्य को पाटती है,
तुम्हारी गुनगनाहट!
तुम्हारी गूंज,
नदी के, इस पार तक आती है!

बने दो तीर कब!
इक धार, न जाने किधर बट चले कब!
अनमनस्क, बहते दो किनारे,
कब से बे-सहारे,
वो एक धार,
नदी के, इस पार तक आती है!

निश्छल, धार वो!
मगर, पहले सी, फिर हुई ना उत्श्रृंखल,
बस, किनारा ही, पखारती है,
मझधार कलकल,
एक हलचल,
नदी के, इस पार तक आती है!

कभी फिर गुजरना!
वैसी ही रहना, छल-छल यूँ ही छलकना,
वही, दो किनारों को पाटती है,
तेरे पाँवों की आहट,
आवाज बनकर,
नदी के, इस पार तक आती है!

पुकारती ही रहना!
कुछ भी कहना! ठहरे हैं जो पल ये मेरे,
ठहर कर, तुझे ही ताकती हैं,
शून्य में, बिखरी हुई,
आवाज तेरी,
नदी के, इस पार तक आती है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 30 April 2017

अचिन्हित तट

ओ मेरे उर की सागर के अचिन्हित से निष्काम तट....

अनगिनत लहर संवेदनाओं के उमरते तुम पर,
सूना है फिर भी क्यूँ तेरा ये तट?
सुधि लेने तेरा कोई, आता क्यूँ नहीं तेरे तट?
अचिन्हित सा अब तक है क्यूँ तेरा ये निश्छल तट?

ओ मेरे उर की सागर के अचिन्हित से निष्काम तट....

निश्छल, निष्काम, मृदुल, सजल तेरी ये नजर,
विरान फिर भी क्यूँ तेरा ये तट?
सजदा करने कोई, फिर क्यूँ न आता तेरे तट?
बिन पूजा के सूना क्यूँ, तेरा मंदिर सा ये निर्मल तट?

ओ मेरे उर की सागर के अचिन्हित से निष्काम तट....

भावुक होगा वो हृदय, जो तैरेगा तेरी लहरों पर,
चिन्हित होगा तब तेरा ये सूना तट!
प्रश्रय लेगी संवेदनाएं, सजदे जब होगे तेरे तट!
रुनझुन कदमों की आहट से, गूजेगा फिर तेरा ये तट।

ओ मेरे उर की सागर के अचिन्हित से निष्काम तट....

नियंत्रित तुम कर लेना, अपनी भावनाओ के ज्वर,
गीला न हो जाए कहीं तेरा ये तट!
पूजा के थाल लिए, देखो कोई आया है तेरे तट!
सजल नैनों से वो ही, सदा भिगोएगा फिर तेरा ये तट!

ओ मेरे उर की सागर के अचिन्हित से निष्काम तट....

Saturday, 28 May 2016

लम्हों के विस्तार

निश्छल लम्हा, निष्ठुर लम्हा, यौवन लम्हों के साथ में...

हर लम्हा बीत रहा, इक लम्हे के इंतजार में,
हर लम्हा डूब रहा, उन लम्हों के ही विस्तार में,
आता लम्हा, जाता लम्हा, हर लम्हे के साथ में।

साँसे लेती ये लम्हा, बीते लम्हों की फरियाद में,
आह निकलती हर लम्हे से, उन लम्हों की याद में,
बीता लम्हा, खोया लम्हा, उन लम्हों के साथ में।

जीवन है हर लम्हा, बीता है जीवन इन लम्हों में,
हर पल बीतता लम्हा, खोया अपनों को इन लम्हों में,
रिश्ता लम्हा, नाता लम्हा, गुजरे लम्हों के साथ में।

हाथों से छूटा है लम्हा, लम्हे यादों सी सौगात में,
खुश्बू बन बिखरता लम्हा, हर लम्हा जीवन के साथ में,
हँसता लम्हा, हँसाता लम्हा, गम की लम्हों के बाद में।

वो पुकारता है लम्हा, लम्हा कहता है कानों में,
गुजरुँगा मैं तुझ संग ही, निर्झर सा तेरे संग विरानों में,
निश्छल लम्हा, निष्ठुर लम्हा, यौवन लम्हों के साथ में।

Monday, 18 January 2016

कोमल हृदय

दो निश्छल हृदय, नन्हे कोमल से,
मिल रहे वसुधा की हरियाली पर,
मन मष्तिष्क हैं अनन्त कल्पनाएँ,
कह देना चाहे बातें सारी मन की!

संवेदनाएँ बेजुवाँ असंख्य नन्हे से,
हृदय अनुभूति प्रकट करें तो कैसे,
निश्छल मन आस पलती नन्ही सी,
चल बैठ यहीं कर ले अपने मन की!

कुछ  तुम अपने  मन की कह लेना,
कुछ मैं अपने मन की भी कह लूँगा,
मतलब इन बातों का कोई हो ना हो,
इन बातों मे ही खुशियाँ जीवन की!

नन्हे हृदय की संवेदना ही एक भाषा,
कोमल मन की निष्कपट अभिलाषा,
दुविधाओं शंकाओं से परे निर्मल मन,
बस यही है मंत्र भावमयी जीवन की।