Tuesday, 5 July 2016

कुछ बोल दे बादल

ओ चिर काल से नभ पर विचरते बादल,
इस वसुधा की कण-कण को भिगोते बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

क्षार सा खारा जल तू पीता,
जिह्वा से तेरी बहता बस मीठा सा जल,
बूंदों में तेरी रचती गंगा-जमुना जल,
तू कितना प्यारा कितना अनमोल बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

गम की बोझ से है भरा पड़ा तू,
तम की घोर कालिमा मे ही लिपटा तू,
हर पल टूटा, हर पल बिखरा है तू,
तेरी धीरज से ना कोई अंजान बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

तम रचता मानव तन के अन्दर भी,
गम के काटें चुभते इस मानव तन को भी,
तेरा मीठा जल पीता क्षुधा मिटाने को भी,
मुख से लेकिन छूटते कड़वे ही बोल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

ओ राग अनुराग में लिप्त घुमरते बादल,
ओ मेरे हृदयाकाश पर उड़ते उन्मुक्त बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

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