कौन जाने अनिश्चित सी मंजिल है किधर,
भीड़ मे जीवन के सफर की,
क्युँ तन्हा सा उपेक्षित ये मन है इधर,
फुर्सत किसे, सुने कौन किसी की,
चल रहे हम इस सफर में, पत्धरों का है ये शहर।
तलाश में सब मंजिलों की,
न कोई है यहाँ पर किसी का हमसफर,
सफर में हैं सबकी साँसें थकी,
ये रास्ते न जाने हमको लिए जा रहे हैं किधर,
थिरकते हैं हम, यहाँ धुन पर किसी की,
अंजाना सा इक शक्ल, तलाशती हैं सबकी नजर।
पड़ाव कैसी है यह उम्र की,
अभी अधूरा सा लगता है क्यूँ ये सफर,
लिए हसरतें निगाहें यार की,
ढूंढता है दिल हरपल बस वही इक नजर,
इन्तहाँ हो चुकी, अब तो तलाश की,
तन्हा ये सफर, काट लेंगे हम जीवन के रास्तों पर।
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