Thursday, 27 April 2017

ये दूरियाँ

क्यूँ रही दिल के बहुत करीब वो सदियों की दूरियाँ?

क्या कोई तिलिस्म है ये
या गहरा है कोई राज ये,
या है ये हकीकत,
या है ये बस इक तसब्बुर की बात।

क्यूँ थम सी गई है धूँध सी चलती हुई ये आँधियाँ?

क्यूँ हवाओं में ललक ये,
या ठहर गई है खुद पवन ये,
या है ये बेताबियाँ,
या है ये बस बदलते मौसमों की बात।

क्या है ये दूरियों में बारीकी से पिरोई नजदीकियाँ?

क्युँ अंधेरों में है चमक ये,
या हैं ये शाम के उजाले,
या है ये सरगोशियाँ,
या है ये दिल उन्हीं दूरियों में आज।

चल संभल ले ऐ दिल, बहकाए न तुझको ये दूरियाँ ।

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