Wednesday 19 April 2017

हमेशा की तरह

हकीकत है ये कोई या है ये दिवास्वप्न, हमेशा की तरह!

हमेशा की तरह, है किसी दिवास्वप्न सा उभरता,
ख्यालों मे फिर वही, नूर सा इक रुमानी चेहरा,
कुछ रंग हल्का, कुछ वो नूर गहरा-गहरा.......
हमेशा की तरह, फिर दिखते कुछ ख्वाब सुनहरे,
कुछ बनते बिगरते, कुछ टूट के बिखरे,
सपने हों ये जैसे, किसी हकीकत से परे......

हमेशा की तरह,किसी झील में जैसे पानी हो ठहरा,
मन की झील में, चुपके से कोई हो आ उतरा,
वो मासूम सी, पर छुपाए राज कोई गहरा.....
हमेशा की तरह, खामोशियों के ये पहरे,
रुमानियत हों ये जैसे, किसी हकीकत से परे.......

हमेशा की तरह, दामन छुड़ा दूर जाता कोई साया,
जैसे है वो, मेरे ही टूटे हृदय का कोई टुकड़ा,
फिर पलट कर वापस, क्युँ देखती वो आँखें.....
हमेशा की तरह, अपनत्व क्युँ ये बढाते,
अंजान से है ये रिश्ते, किसी हकीकत से परे.......

हकीकत है ये कोई या है ये दिवास्वप्न, हमेशा की तरह!

No comments:

Post a Comment