Saturday, 13 January 2018

मकर संक्रंति

नवभाव, नव-चेतन ले आई, ये संक्रांति की वेला........

तिल-तिल प्रखर हो रही अब किरण,
उत्तरायण हुआ सूर्य निखरने लगा है आंगन,
न होंगे विस्तृत अब निराशा के दामन,
मिटेंगे अंधेरे, तिल-तिल घटेंगे क्लेश के पल,
हर्ष, उल्लास,नवोन्मेष उपजेंगे हर मन।

धनात्मकता सृजन हो रहा उपवन में,
मनोहारी दृश्य उभर आए हैं उजार से वन में,
खिली है कली, निराशा की टूटी है डाली,
तिल-तिल आशा का क्षितिज ले रहा विस्तार,
फैली है उम्मीद की किरण हर मन में।

नवप्रकाश ले आई, ये संक्रांति की वेला,
अंधियारे से फिर क्युँ,डर रहा मेरा मन अकेला,
ऐ मन तू भी चल, मकर रेखा के उस पार,
अंधेरों से निकल, प्रकाश के कण मन में उतार,
मशाल हाथों में ले, कर दे  उजियाला।

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 जनवरी 2020 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. आदरणीय पुरुषोत्तम जी, आपकी यह आशा और विश्वास से भरी रचना आमजन को प्रगति के पथ पर निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा प्रदान करती है। शब्दों का चुनाव, भावनाओं का सुन्दर अलंकरण, रचना को उत्कृष्टता प्रदान कर रही है। लिखते रहें !  सादर 'एकलव्य'  

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    1. सम्मान पूर्वक आपका आभार। आप जैसे निपुण गुणीजन से प्रशंसा पाकर हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है ।

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  3. धनात्मकता सृजन हो रहा उपवन में,
    मनोहारी दृश्य उभर आए हैं उजार से वन में,
    खिली है कली, निराशा की टूटी है डाली,
    तिल-तिल आशा का क्षितिज ले रहा विस्तार,
    फैली है उम्मीद की किरण हर मन में।
    सुंदर सकारात्मक सृजन।
    सुंदर शब्द चयन।
    सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  4. नवप्रकाश ले आई, ये संक्रांति की वेला,
    अंधियारे से फिर क्युँ,डर रहा मेरा मन अकेला,
    ऐ मन तू भी चल, मकर रेखा के उस पार,
    अंधेरों से निकल, प्रकाश के कण मन में उतार, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुंदर
    शुभकामनाएं

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