Tuesday, 4 June 2019

तुम्हारी ही बातें

तुम्हारी वो ही बातें, फिर सताने लगी है कल से..

हर बंधनों से, मुक्त था मैं कल तक,
यादें वही, ले आई है तुझ तक,
दूर जाऊँ मैं कैसे, मन को समझाऊँ मैं कैसे,
मुक्त, जाल से हो पाऊँ मैं कैसे,
मन पे घिरने लगे हैं, फिर वही जाल कल से..

तुम्हारी वो ही बातें, फिर सताने लगी है कल से..

वो अंतहीन सी, तुम्हारे प्रश्नों की लड़ी,
वो हँसी की, गूंजती फुलझड़ी,
प्रश्न के उस जाल में, बस मेरा उलझ जाना,
अनुत्तरित प्रश्नों का, वो जमाना,
मन को जलाने लगे, फिर वही प्रश्न कल से...

तुम्हारी वो ही बातें, फिर सताने लगी है कल से..

कभी चुपके, तुम्हारा दबे पाँव आना,
फेरकर नजरें, वहीं बैठ जाना,
मिन्नतों का फिर, अनथक सा वो सिलसिला,
हर बात पर, कोई शिकवा गिला,
तड़पाने लगे हैं मन, फिर वही बात कल से...

तुम्हारी वो ही बातें, फिर सताने लगी है कल से..

किसी झील सा, यूँ गुम-सुम सा था मैं,
ठहरा वहीं, चुप-चुप सा था मैं,
वही आहट सी आई, कोई हलचल सी लाई,
यादें तेरी, फिर कहीं झिलमिलाई,
मन को रुलाने लगे, फिर वही याद कल से..

तुम्हारी वो ही बातें, फिर सताने लगी है कल से..

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-06-2019) को "बोलता है जीवन" (चर्चा अंक- 3357) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सभी मौमिन भाइयों को ईदुलफित्र की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर !
    वो अंतहीन सी, तुम्हारे प्रश्नों की लड़ी,
    वो हँसी की, गूंजती फुलझड़ी,
    प्रश्न के उस जाल में, बस मेरा उलझ जाना,
    अनुत्तरित प्रश्नों का, वो जमाना,
    मन को जलाने लगे, फिर वही प्रश्न कल से...
    विशेष भावभीनी पंक्तियाँ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मीना जी।

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  3. किसी झील सा, यूँ गुम-सुम सा था मैं,
    ठहरा वहीं, चुप-चुप सा था मैं,
    वही आहट सी आई, कोई हलचल सी लाई,
    यादें तेरी, फिर कहीं झिलमिलाई,
    मन को रुलाने लगे, फिर वही याद कल से.. वाह बेहतरीन रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।

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