मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!
खुश्बू सी हवाओं में, घुलते हो तुम,
इक फूल सा, खिलते हो तुम,
देखता हूँ बस तुम्हें, जागने से पहले,
दिन ढ़ले, महसूस होते हो तुम,
हो इक रौशनी या हो खिली चाँदनी,
रंग हो या हो कोई रागिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!
मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!
हर घड़ी एक दस्तक, देते हो तुम,
मेरी तन्हाईयों में, होते हो तुम,
अनथक सी बातें, सवालों से पहले,
फिर शिकायतें, करते हो तुम,
हो इक यामिनी या दमकती दामिनी,
रूप हो या हो कोई कामिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!
मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
खुश्बू सी हवाओं में, घुलते हो तुम,
इक फूल सा, खिलते हो तुम,
देखता हूँ बस तुम्हें, जागने से पहले,
दिन ढ़ले, महसूस होते हो तुम,
हो इक रौशनी या हो खिली चाँदनी,
रंग हो या हो कोई रागिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!
मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!
हर घड़ी एक दस्तक, देते हो तुम,
मेरी तन्हाईयों में, होते हो तुम,
अनथक सी बातें, सवालों से पहले,
फिर शिकायतें, करते हो तुम,
हो इक यामिनी या दमकती दामिनी,
रूप हो या हो कोई कामिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!
मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-08-2019) को "मेक इन इंडिया " (चर्चा अंक- 3438) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार
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