Sunday 4 August 2019

परछाईं तेरी

वो तुम थे, या थी बस परछाईं तेरी,
थी खुश्बू कोई, जिनसे मिलती थी तन्हाई मेरी,
महक उठता था, चमन, वो गुलशन सारा,
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!

थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा!
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा!

इक हमसाए सी रही, परछाईं तेरी,
इक धुंध सी थी, भटकती थी जहाँ तन्हाई मेरी,
धुआँ-धुआँ सा हुआ, था वो आलम सारा,
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!

थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा!
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा!

थे धुंध के पहरे, या थी जुल्फें तेरी,
उलझते थे वो बादल, या उलझती थी लटें तेरी,
यूं वादियों से कहीं, था तन्हाई ने पुकारा,
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!

थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा!
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा!

हैरां कर गई, चुप सी वो बातें तेरी,
तन्हाईयों से हुई, वो लम्बी सी मुलाकातें मेरी,
ढूंढता हूँ अब, उन्ही लम्हातों का सहारा,
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!

थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा!
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा!

दूर जाती रही, मुझसे परछाईं तेरी,
यूँ  सताती रही, पास आकर वही तन्हाई मेरी,
गुजरा न वो पल, बेरहम वो वक्त ठहरा,
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!

थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा!
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही भावुक रचना है। चलचित्र।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. थे धुंध के पहरे, या थी जुल्फें तेरी,
    उलझते थे वो बादल, या उलझती थी लटें तेरी,
    यूं वादियों से कहीं, था तन्हाई ने पुकारा,
    वो थे तुम, या था वो भरम सारा!...
    प्रेम की इन्तहा है जो हर शे में तुझे ढूंढती है ... वादी में तुझे पुकारती है ... यायाकीनन वो तुम ही होंगी ... भरम ऐसा नहीं होता ...

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