चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....
मन को चीर रही, ये शोर, ये भीड़,
हो चले, कितने, ये लोग अधीर,
हर-क्षण है रार, ना मन को है करार,
क्षण-भर न यहाँ, चैन जरा!
चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....
सुई सी चुभे, कही-अनकही बातें,
मन में ही दबी, अनकही बातें,
कैसे, कर दूँ बयाँ, दर्द हैं जो हजार,
समझा, इस मन को जरा!
चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....
वो छाँव कहाँ, मिले आराम जहाँ,
वो ठाँव कहाँ, है शुकून जहाँ,
नफ़रतों की, चली, कैसी ये बयार,
बहला, मेरे मन को जरा!
चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसतत प्रेरणा हेतु आभारी हूँ आदरणीया दी।
Deleteबहुत सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया ।
Deleteभावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteजिसका जीवन ही तन्हाइयों से भरा हो वह किससे कहें ?
शुक्रिया आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteआप और आपके परिवार को 71 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ।🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जयहिंद.
नफ़रतों की, चली, कैसी ये बयार,
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना. 👏 👏 👏 अप्रतिम
बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा बहन।
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