Saturday, 30 May 2020

करवट

सो जाऊँ कैसे, मैं, करवटें लेकर!
पराई पीड़ सोई, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
व्यथा के अथाह सागर, दोनो तरफ,
विलग हो पाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!

देखूँ ना कैसे, मैं औरों के गम!
अंकुश लगाऊँ कैसे, इन संवेदनाओं पर,
वश धारूँ कैसे, मन की वेदनाओं पर,
जड़-चेतन बनूँ मैं कैसे?
रख पाऊँ कैसे, चिंतन-विहीन खुद को,
रह जाऊँ कैसे, सर्वथा अलग!
सो जाऊँ, कैसे!
सत्य से परे, करवटें लेकर!

तकता हूँ गगन, जागा हुआ मैं!
जागी है वेदना, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
नीर निर्झर, नैनों से बहे, दोनों तरफ,
अचेतन हो जाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।

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    1. पत्रकारिता दिवस की हार्दिक बधाई आपको भी आदरणीय मयंक जी।

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  2. सो जाऊँ कैसे?
    सत्य से परे, मुँह फेर कर! सामयिक सरोकारों पर कवि के सार्थक प्रतिक्रियात्मक स्वर।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. खूब लिखा है आपने,

    सो जाऊँ कैसे?
    सत्य से परे, मुँह फेर कर!

    💐💐

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  5. व्यथा के अथाह सागर दोनों तरफ। वाह!
    बहुत सुंदर रचना।

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. वाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!
    सो जाऊँ कैसे सत्य से परे ,
    मुँह फेर कर ...वाह!!

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    1. मुक्तकंठ प्रशंसा व सदैव सहयोग हेतु आभारी हूँ आदरणीया शुभा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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