Tuesday 2 June 2020

गौण

वो, जो गौण था!
जरा, मौन था!
वो, तुम न थे, तो वो, कौन था?

मंद सी, बही थी वात,
थिरक उठे थे, पात-पात,
मुस्कुरा रही, थी कली,
सज उठी, थी गली,
उन आहटों में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

सिमट, रही थी दिशा,
मुखर, हो उठी थी निशा,
जग रही थी, कल्पना,
बना एक, अल्पना,
उस अल्पना में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

वो ख्वाब का, सफर,
उनींदी राहों पे, बे-खबर,
वो जागती, बेचैनियाँ,
शमां, धुआँ-धुआँ,
उस रहस्य में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

वो, जो गौण था!
जरा, मौन था!
वो, तुम न थे, तो वो, कौन था?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-06-2020) को   "ज़िन्दगी के पॉज बटन को प्ले में बदल दिया"  (चर्चा अंक-3721)    पर भी होगी। 
    --
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रकाश जी।

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  4. सिमट, रही थी दिशा,
    मुखर, हो उठी थी निशा,
    जग रही थी, कल्पना,
    बना एक, अल्पना,
    उस अल्पना में, कुछ न कुछ, गौण था!
    वो, तुम न थे, तो वो कौन था

    बहुत बढ़ियाँ

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    1. आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा हेतु आभारी हूँ आदरणीया ।

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  5. कल्पनाओं में अल्पनाओं का निर्माण ...
    चाहे गौण ही ...
    बहुत खूबसूरत उड़ान कल्पनाओं की ... बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  6. जिसके लिए इतने सुंदर अंतरा लिखे गए वह गौण कैसे? विरोधाभास हो रहा है, गौण शब्द खटक रहा है।

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    1. रचना को उकेरने व विशिष्ट टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी।
      जीवन में सब हासिल हो, यह मुमकिन नहीं। पर, जो गौण होकर भी अपनी सशक्त उपस्थिति का एहसास दिलाए, उस अनुभूति की बात ही अलग है।
      पुनः शुक्रिया ।

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  7. वो ख्वाब का, सफर,
    उनींदी राहों पे, बे-खबर,
    वो जागती, बेचैनियाँ,
    शमां, धुआँ-धुआँ,
    उस रहस्य में, कुछ न कुछ, गौण था!
    वो, तुम न थे, तो वो कौन था

    कभी कभी इक पंक्ति आकर्षक का लेती है और उसके आकर्षण में बंधे इक सांस में ही पूरी रचना पढ़ जाते हैं और बिना किसी धुन के गीत पनप उठता है। ..कुछ ऐसी ही रचना है ये


    खूबसूरत

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    1. आदरणीया जोया जी, कभी-कभी कोई पल बस छूकर गुजर जाता है और दै जाता है अंतहीन सा कसक।
      बस यही कुछ है।
      बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।

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  8. जरा, मौन था!
    वो, तुम न थे, तो वो, कौन था?

    मंद सी, बही थी वात,
    थिरक उठे थे, पात-पात,
    मुस्कुरा रही, थी कली,
    सज उठी, थी गली,
    उन आहटों में, कुछ न कुछ, गौण था!
    वो, तुम न थे, तो वो कौन था.. बहुत ही खूबसूरत सृजन सर.
    सादर

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    1. कुछ लिखते वक्त कभी कोई जख्म फिर उभर आए, ऐसा ही कुछ उभर आया यहाँ ।
      आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया अनीता जी ।

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  9. वाह
    बहुत सुंदर सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय ज्योति खरे जी।

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  10. बहुत ही सुंदर गीत ।

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    1. आदरणीय अखिलेश जी, इस पटल पर हार्दिक स्वागत है आपका । आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ ।

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