तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
संग थे चले, नादान कितने पल,
हो रहे वही पल, फिर जीवंत आज कल,
वो कुछ याद बन रहे, संवाद कर गए,
संवाद-हीन कुछ, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
उस धार में, अथक सी प्रवाह थी,
सपन में पली, इक ज्वलंत सी चाह थी,
जीवंत से चाह, संग प्रवाह बन बहे,
कुछ रहे रुके, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
तन्हा कहाँ, उम्र का ये रथ चला,
वक्त का काफिला, मुझसे खुलके मिला,
ये इक शिरा, तो संग है आज भी,
शिरे वो दूर के, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
ठहरने लगी, है उम्र की ये नदी,
क्षणिक ये पल नहीं, बिताई है इक सदी,
रुकी सी रह गई, कोई पल साथ में,
कुछ पल कहीं, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
खट्टी-मीठी, यादों के वो पल,
हसरतों भरे, कितनी इरादों के वो पल,
मचल से गए, उभर से गए कभी,
तस्वीर में ढ़ले, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
कल हम न हों, पर गम न हो,
समय की साज के, ये गीत कम न हो,
ये नज्म प्यार के, कुछ मेरे पास हैं,
गीतों में कई, याद बन चले!
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteआभार आदरणीया शुभा जी।
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteआभार आदरणीया अनीता जी।
Deleteयादों से संवाद का सुंदर प्रवाह बहाए लिए चल रहा है । बहुत सुंदर । आभार ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।
Deleteयादों की माला में जीवन के अनुभवों को संजोये अत्यंत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।
Deleteठहरने लगी, है उम्र की ये नदी,
ReplyDeleteक्षणिक ये पल नहीं, बिताई है इक सदी,
लाजबाब आदरणीय
Hindi Vyakran Samas
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनोज जी
Deleteवाह सार्थक सुंदर चिंतन।
ReplyDeleteसुंदर सृजन ।
हार्दिक आभार आदरणीया।
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