न ऐसी, कोई बात थी!
बस, छलकी थी बूँदें, न कोई बरसात थी!
कभी ये मन, भर आए तो क्या!
आँखें ही हैं, छलक भी जाएं तो क्या!
चाहे, ये दिल दुखे,
या कहीं, लुटती रहे अस्मतें,
समझ लेना, जरा विचलित वो रात थी!
अपनी ही जिद पर, हालात थी!
न ऐसी, कोई बात थी!
बस, छलकी थी बूँदें, न कोई बरसात थी!
कहाँ वो, संवेदनाओं का गाँव!
हर तरफ, गहन वेदनाओं का रिसाव!
चाहे, देश ये जले,
लाशों पे, जिये ये रियासतें,
समझ लेना, सियासतों की ये बात थी!
विवश हो चली, वो हालात थी!
न ऐसी, कोई बात थी!
बस, छलकी थी बूँदें, न कोई बरसात थी!
विषाक्त हो, जब हवा तो क्या!
जहर साँस में, घुल भी जाए तो क्या!
चाहे, रक्त ये जमे!
या तीव्र चाल, वक्त की रुके,
समझ लेना, प्रगति की ये सौगात थी!
अनियंत्रित सी, वो हालात थी!
न ऐसी, कोई बात थी!
बस, छलकी थी बूँदें, न कोई बरसात थी
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सुन्दर
ReplyDeleteआभार आदरणीय जोशी जी
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