Friday, 27 November 2020

और अभी कितने दिन

और कितने दिन, जीवन के पलछिन!

ये साँसें, कल, थक ना जाएँ,
हो ना हो, कल ये, रुक भी जाएँ!
जीवन, सध भी न पाए,
कैसे कह पाएँ,
बाकि हैं, कितने पलछिन!

और अभी कितने दिन!

पाया जितना, काफी था वो,
चाहा कितना, ना-काफी था वो!
चाहें, तो अब कैसे चाहें,
कोई समझाए,
बाकि हैं, कितने पलछिन!

और अभी कितने दिन!

ठौर मिला, बेशक दौर चला,
मेरे अपनों में, कोई और मिला!
हम गैर किसे कह जाएं,
किसको ठुकराएं,
बाकि हैं, कितने पलछिन!

और अभी कितने दिन!

ठुकरा देता, गर मेरा न होता,
जाते इस पल का, घेरा न होता!
सायों को, कैसे ठुकराएं,
कैसे हाथ छुड़ाएं,
बाकि हैं, कितने पलछिन!

और अभी कितने दिन!

उल्टी साँसें, गिन पाऊँ कैसे,
उखरी हैं साँसें, कह पाऊँ कैसे!
ना ही, धीरज रख पाएं,
कैसे बतलाएं,
बाकि हैं, कितने पलछिन!

और कितने दिन, जीवन के पलछिन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

6 comments:

  1. पाया जितना, काफी था वो,
    चाहा कितना, ना-काफी था वो!
    चाहें, तो अब कैसे चाहें,
    कोई समझाए,
    बाकि हैं, कितने पलछिन
    खुद से संवाद करते कवि के मार्मिक उद्गार, जो भीतर संवेदना जगा गए। सादर 🙏🙏

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी

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  2. अत्यंत सुंदर सृजन ।

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    1. रचना से जुड़ने व प्रोत्साहित करने हेतु आभार आदरणीया अमृता जी।

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