Sunday 10 January 2021

वो खत

फिर वर्षों सहेजते!
किताबों में रख देने से पहले,
खत तो पढ़ लेते!

यूँ ना बनते, हम, तन्हाई के, दो पहलू,
एकाकी, इन किस्सों के दो पहलू,
तन्हा रातों के, काली चादर के, दो पहलू!
यूँ, ये अफसाने न बनते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

वो चंद पंक्तियाँ नहीं, जीवन था सारा,
मूक मनोभावों की, बही थी धारा,
संकोची मन को, कहीं, मिला था किनारा!
यूँ, कहीं भँवर न उठते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

बीती वो बातें, कुरेदने से क्या हासिल,
अस्थियाँ, टटोलने से क्या हासिल,
किस्सा वो ही, फिर, दोहराना है मुश्किल!
यूँ, हाथों को ना मलते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

अब, जो बाकि है, वो है अस्थि-पंजर,
दिल में चुभ जाए, ऐसा है खंजर,
एहसासों को छू गुजरे, ये कैसा है मंज़र!
यूँ, छुपाते या दफनाते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!
फिर वर्षों सहेजते!
किताबों में रख देने से पहले,
खत तो पढ़ लेते!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

22 comments:

  1. ख़तों का तो एक इतिहास रहा है।
    बढिया प्रस्तुति।

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  2. बहुत सुन्दर।
    आज डिजीटल का जमाना है।

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    1. आदरणीय सर, ये गुजरे समय से ही संबंधित है🙂🙂🙂

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  3. सुन्दर। विश्व हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।

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    1. सादर प्रणाम। आपको भी विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं। ।।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 12 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-1-21) को "कैसे बचे यहाँ गौरय्या" (चर्चा अंक-3944) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा



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  6. वो चंद पंक्तियाँ नहीं, जीवन था सारा,
    मूक मनोभावों की, बही थी धारा,
    संकोची मन को, कहीं, मिला था किनारा!
    यूँ, कहीं भँवर न उठते,
    किताबों में रख देने से पहले,
    वो खत तो पढ़ लेते!..काश कि ख़त अभी भी चलन में होता ..सुंदर मनोभावों को व्यक्त करती सुंदर रचना..

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  7. वो चंद पंक्तियाँ नहीं, जीवन था सारा,
    मूक मनोभावों की, बही थी धारा,
    संकोची मन को, कहीं, मिला था किनारा!
    यूँ, कहीं भँवर न उठते,
    किताबों में रख देने से पहले,
    वो खत तो पढ़ लेते!
    संकोची मन अपने जज्बातों को खत के सहारे बताते थे पहले.....बिना पढ़े किसी के जज्बात खत के साथ किताबों में दफन हो गये...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी। आभार।

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  8. वाह स‍िन्हा साहेब, किताबों में रख देने से पहले,
    वो खत तो पढ़ लेते!...एक पश्चाताप और संबंधों को याद कराती कव‍िता....

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    1. जी बिल्कुल आदरणीय अलकनंदा महोदय। बहुत-बहुत धन्यवाद।।।।।आभार।।।

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  9. खुशियों को यूँ ही कल के लिए सहेज लेने की प्रवृत्ति आज को दुःख में धकेल कर आत्मग्लानि के अतिरिक्त कुछ नहीं देता है । अत्यंत भावपूर्ण ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  10. वो चंद पंक्तियाँ नहीं, जीवन था सारा,
    मूक मनोभावों की, बही थी धारा,
    संकोची मन को, कहीं, मिला था किनारा!
    यूँ, कहीं भँवर न उठते,
    किताबों में रख देने से पहले,
    वो खत तो ...अनुभवशील रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सधु जी।

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  11. वाह... सुन्दर प्रस्तुति!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय हृदयेश जी

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