Saturday, 16 January 2021

फेहरिस्तों का शहर

कभी, भूले से, कोई आता है इधर!
जाने, कैसा ये शहर!

लोग कहते हैं, कोई विराना है उधर!
न इन्सान, न कोई राह-गुजर!
हुए सदियों, कोई गुजरा न इधर,
जाने, कैसा ये शहर!

ख्वाबों के कई, फेहरिस्तों का शहर!
कई अनसुने, गीतों का डगर!
बनते-बिगरते , रिश्तों का ये घर,
जाने, कैसा ये शहर!

एक मैं हूँ, यहीं, अकेला सा बेखबर!
सपनों के कई, टूटे से ये घर!
परवाह किसे किसको ये फिकर,
जाने, कैसा ये शहर!

लग न जाए, इन ख्वाबों को भी पर!
फिरे आसमानों, पर बेफिक्र,
दूर कितना, सितारों का वो घर,
जाने, कैसा ये शहर!

कभी, भूले से, कोई आता है इधर!
जाने, कैसा ये शहर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 17 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. परवाह किसे, किसको है फिकर
    जाने कैसा ये शहर, बहुत खूब

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  4. वाह सि‍न्हा साहब ...क्या खूब ल‍िखा है क‍ि ...एक मैं हूँ, यहीं, अकेला सा बेखबर!
    सपनों के कई, टूटे से ये घर!
    परवाह किसे किसको ये फिकर,
    जाने, कैसा ये शहर!...

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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