Friday 8 January 2021

श्रद्धांजलि

एक अभिन्न मित्र की असामयिक अंतिम यात्रा पर, अनुभूति के श्रद्धासुमन.....इक श्रद्धांजलि

अकेले ही, मुड़ गए तुम, अनन्त की ओर,
पीछे, सारे सगे-संबंधी, छोड़!

एक कदम, बिन साथी, तुम कब चलते थे,
तुम तो, तन्हाई से भी, डरते थे,
पर अबकी, चल पड़े तुम,
तन्हा, बिन बोले,
उस अंजाने, अंधेरे की ओर,
सब, संगी-साथी छोड़! 

अकस्मात्, तुम, चुन बैठे, इक अनन्त पथ, 
ना, सारथी कोई, ना कोई, रथ,
अनिश्चित सा, वो गन्तव्य!
खाई, या पर्वत!
या, वो इक अंतहीन सा मोड़,
या, सघन वन घनघोर!

माना कि जरा भारी था, ये वक्त, ये संघर्ष!
पर, स्वीकारना था, इसे सहर्ष,
यूँ खत्म, नहीं होती बातें,
यूँ फेरकर आँखें,
चल पड़े हो, सच से मुँह मोड़,
बेफिक्र हो, उस ओर!

जाते-जाते, संग उन यादों को भी ले जाते,
सारी, कल्पनाओं को ले जाते,
ढूंढेगीं, जो अब तुझको,
यूँ, रह-रह कर,
गए ही क्यों, रख कर इस ओर!
विस्मृतियों के, ये डोर!

अकेले ही, मुड़ गए तुम, अनन्त की ओर,
पीछे, सारे सगे-संबंधी, छोड़!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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प्रिय मित्र स्व.कौशल  ....अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 
जहाँ भी हो, खुश रहो दोस्त,
स्मृति के सुमधुर क्षण में,  तुम हमेशा संग रहोगे।

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि

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  3. ऊँ शांति
    हृदयस्पर्शी रचना।

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  4. दुखद!
    ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
    हृदय की चित्कार उरेकती अंतस रचना पुरुषोत्तम जी ।
    आपकी इस रचना ने निश्चय ही पाठकों को आपका अनुयायी बना दिया है। सादर।

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  5. अवाक ! फिर भी स्मृतियां उन्हें आखिरी सांँस तक जीवित रखेंगी और उन्हें याद करते हुए संबल अवश्य मिलेगा ।

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  6. बहुत दुःख हुआ पुरुषोत्तम जी | निशब्द हूँ --- --- वेदनापूर्ण अनुभूतियाँ बहुत हृदयविदारक हैं | अभिन्न
    स्नेही मित्र को खोने से बढ़कर कोई क्षति नहीं |दिवंगत कौशल जी की आत्मा भी ये उद्बोधन सुनकर विचलित हो गई होगी | ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे , यही प्रार्थना करती हूँ | उनकेपरिवार और आपको ये क्षति सहने की शक्ति दे | कौशल जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन |

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  7. मैं अपने सभी सुभेक्षी कविजन का आभारी हूँ जिन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरे गम पर मरहम लगाने जैसा अनुभव दिया है मुझे।
    आहत मन और क्या कहे......
    समस्त गुणीजनों का अभिवादन।।।।।।

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  8. जाते-जाते, संग उन यादों को भी ले जाते,
    सारी, कल्पनाओं को ले जाते,
    ढूंढेगीं, जो अब तुझको,
    यूँ, रह-रह कर,
    गए ही क्यों, रख कर इस ओर!
    विस्मृतियों के, ये डोर!...दिल को छू गई आपकी रचना

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