Sunday, 3 January 2021

दो ही दिन

अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!

पा लेने को, है उन्मुक्त गगन,
है छू लेने को, उम्मीदों के कितने घन!
खुला-खुला, उद्दीप्त ये आंगन,
बुलाता, ये सीमा-विहीन क्षितिज,
भर आलिंगन!

अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!

जितना सौम्य, उतना सम्यक,
रहस्यमयी उतनी ही, यह दृष्टि-फलक!
धारे रूप कई,  बदले रंग कई!
हर रूप अनोखा, हर रंग सुरमई,
और मनभावन!

अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन

पर अंजाना आने वाला क्षण!
ना जाने कौन सा पल, है कितना भारी!
किस पल, बढ़ जाए लाचारी!
ना जाने, ले आए, कौन सा पल,
अन्तिम क्षण!

अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!

समेट लूँ, जो शेष है जीवन!
भर लूँ दामन में, कर लूँ इक आलिंगन!
कंपित हो, सुसुप्त धड़कन!
जागृत रहे, किसी की वेदना में,
ये हृदयांगण!

अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

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    1. आदरणीया जोशी जी, बहुत-बहुत धन्यवाद व नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शान्तनु जी। धन्यवाद।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४-०१-२०२१) को 'उम्मीद कायम है'(चर्चा अंक-३९३६ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. आभारी हूँ आदरणीय। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय माथुर जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  6. सुन्दर रचना।
    --
    नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मयंक जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  7. कहते हैं चार दिन की जिंदगी है, सो आधी गुजर गयी आधी ही शेष है...

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    1. आभारी हूँ आदरणीया अनीता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शान्तनु जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  9. वाह! बहुत सुन्दर माननीय ।
    सादर।

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  10. जीवन की नश्वरता और शेष कामनाओं को उकेरती भावपूर्ण रचना पुरुषोत्तम जी |शायद हर इंसान यही सोचता है पर कह पाने में अक्षम है | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. आदरणीया रेणु जी, आपकी प्रतिक्रिया मे भी विलक्षणता भरी होती है। जब भी आपकी प्रतिक्रिया पाता हूँ, गौरवान्वित हो उठता हूँ। शुभकामनाओं सहित अभिवादन व आभार।

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