Sunday 14 February 2021

एक कशमकश

सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!

चाह कर भी, असंख्य बार,
कह न पाया, एक बार,
पहुँच चुका,
उम्र के इस कगार,
रुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
सोचता हूँ,
गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
दंश, ये न झेलता,
पर अब,
भला, कुछ कहूँ या ना कहूँ!

सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!

रोकती रही, ये कशमकश,
कर गई, कुछ विवश,
छिन चला,
इस मन का वश,
पर रहा खुला, ये मन का द्वार,
सोचता हूँ,
इक सत्य को, गर न यूँ नकारता,
भावनाओं को उकेरता,
दंश, ये न झेलता,
पर अब,
भला, कहूँ भी तो क्या कहूँ!

सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
.................................................

जो कहना हो, समय रहते कह देना ही बेहतर....
Happy Valentine Day

26 comments:


  1. सोचता हूँ, कह ही दूँ!
    सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!

    चाह कर भी, असंख्य बार,
    कह न पाया, एक बार,
    पहुँच चुका,
    उम्र के इस कगार,
    रुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
    सोचता हूँ,
    गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
    मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
    दंश, ये न झेलता,
    पर अब,
    भला, कुछ कहूँ या ना कहूँ!
    मनमोहक रचना

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 15 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. सुन्दर और भावप्रवण अभिव्यक्ति।

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  5. वाह! सुन्दर।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  6. कोमल भावनाओं से युक्त सुंदर रचना..

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  7. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी

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  8. हृदय को भेदती हुई है ये कशमकश । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  9. सुन्दर भावों को साधती बाँधती,बहुत कुछ कहने को आतुर अनोखी रचना..

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी।

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  10. भावपूर्ण सार्थक रचना..

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  11. सत्य जितना जल्दी स्वीकार हो उतना ही अच्छा होता है ... नहीं तो वक़्त बीत जाने पर पछतावे के दंश झेलने होते हैं ...
    गहरे भाव पिरोये हैं ...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नसवा साहेब।

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  12. भावनाओं में बहते मन का निर्बाध स्वर !!!

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  13. उम्र के इस कगार,
    रुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
    सोचता हूँ,
    गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
    मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
    दंश, ये न झेलता, मार्मिक अभिव्यक्ति !

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    1. आदरणीया रेणु जी,
      आपकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार व्यक्त करूँ तो कैसे? सतत् आपने सराहा, मान बढ़ाया, यह भार उतारूँ कैसे?

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