जाने क्यूँ? बह पड़े हैं, सारे भाव!
अन्तः, जाने कैसा है भँवर!
पीड़ असहज, दे रहे हृदय के घाव!
ज्यूँ फूट पड़े हैं छाले!
पर, अब तक, बड़ा सहज था मैं!
या, कुछ ना-समझ था मैं?
शायद, अंजाना सा, यह प्रतिश्राव,
आ लिपटा है मुझसे!
शायद, जाग रही, सोई संवेदना,
या, चैतन्य हो चली चेतना!
या, हृदय चाहता, कोई एक पड़ाव,
आहत होने से पहले!
जाने क्यूँ, अनमनस्क से हैं भाव!
अन्तः, उठ रहा कैसा ज्वर!
कंपित सा हृदय, पल्पित सा घाव!
ज्यूँ छलक रहे प्याले!
भँवर या प्रतिश्राव, तीव्र ये बहाव,
समेट लूँ, सारे बहते भाव!
रोक लूँ, ले चलूँ, ऊँचे किनारों पर,
बिखर जाने से पहले!
जरा, समेट लूँ, यह आत्म-चेतना,
फिर कर पाऊंगा विवेचना!
व्याकुल कर जाएगा, ये प्रतिश्राव,
संभल जाने से पहले!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
संवेदना से भरी हुई रचना
ReplyDeleteहर पंक्ति में दर्द छलक रहा है
आभार आदरणीया। ।।।।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteसादर आभार महोदय
Deleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार महोदय
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2043...अपने पड़ोसी से हमारी दूरी असहज लगती है... ) पर गुरुवार 18 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार महोदय
Deleteबहुत सुन्दर व अलहदा सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार महोदय
Deleteसारे भाव कहाँ समेटा जाता है , इधर संभाले तो उधर से बह जाता है । अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteभावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteअपनी विह्वलता को शब्द दिए हैं ।सुंदर और संवेदनशील रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteभावप्रवण, अंतर्मन को छूती सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteभावनाओं का कोमल प्रवाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteजरा, समेट लूँ, यह आत्म-चेतना,
ReplyDeleteफिर कर पाऊंगा विवेचना!
व्याकुल कर जाएगा, ये प्रतिश्राव,
संभल जाने से पहले!
खुद से उलझते मन की जीवंत उहापोह जिन्हें व्यज्त करने में आपका कोई सानी नहीं | सादर
आदरणीया रेणु जी,
Deleteआपकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार व्यक्त करूँ तो कैसे? सतत् आपने सराहा, मान बढ़ाया, यह भार उतारूँ कैसे?