Sunday 28 February 2021

कल से यहाँ

कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!

भाए न, तुम बिन, ये मद्दिम सा दिन,
लगे बेरंग सी, सुबह की किरण,
न सांझ भाए, 
ना रात भाए, कल से यहाँ!

वो बिखरा क्षितिज, कितना है सूना,
वो चित्र सारे, किसी ने है छीना,
बेरंग ये पटल, 
सूने ये नजारे, कल से यहाँ!

बड़ी बेसुरी, हो चली ये रागिणी अब,
वो धुन ही नहीं, गीतों में जब,
न गीत भाए,
ना धुन सुहाए, कल से यहाँ!

यूँ अभिभूत किए जाए, इक कल्पना,
बनाए, ये मन, कोई अल्पना,
यादों में आए,
वो ही सताए, कल से यहाँ!

कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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इस पटल पर 1300 वीं रचना.......
सफर जारी है अभी.....

14 comments:

  1. भाए न, तुम बिन, ये मद्दिम सा दिन,
    लगे बेरंग सी, सुबह की किरण,
    न सांझ भाए,
    ना रात भाए, कल से यहाँ....विरह वेदना का अतिसुंदर चित्रण

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    1. आदरणीया शकुन्तला जी,
      अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  2. बहुत खूब पुरुषोत्तम जी | जब कोई मन का साथ आसपास ना हो तो हर चीज बेरंग और बेनूर नज़र आती है | बहुत ही मार्मिकता से मन की व्यथा को कहती सुंदर भावपूर्ण कविता | हार्दिक शुभकामनाएंऔर बधाई |

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    1. आदरणीया रेणु जी,
      अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  3. मन को छूती भावपूर्ण रचना ..

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    1. आदरणीया जिज्ञासा जी,
      अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 मार्च 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीया दी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  6. बेचैन मन का बहुत ही सुंदर चित्रण।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता जी, आपसे सतत सहयोग हेतु आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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    1. आदरणीय जोशी जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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