कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!
भाए न, तुम बिन, ये मद्दिम सा दिन,
लगे बेरंग सी, सुबह की किरण,
न सांझ भाए,
ना रात भाए, कल से यहाँ!
वो बिखरा क्षितिज, कितना है सूना,
वो चित्र सारे, किसी ने है छीना,
बेरंग ये पटल,
सूने ये नजारे, कल से यहाँ!
बड़ी बेसुरी, हो चली ये रागिणी अब,
वो धुन ही नहीं, गीतों में जब,
न गीत भाए,
ना धुन सुहाए, कल से यहाँ!
यूँ अभिभूत किए जाए, इक कल्पना,
बनाए, ये मन, कोई अल्पना,
यादों में आए,
वो ही सताए, कल से यहाँ!
कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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इस पटल पर 1300 वीं रचना.......
सफर जारी है अभी.....
भाए न, तुम बिन, ये मद्दिम सा दिन,
ReplyDeleteलगे बेरंग सी, सुबह की किरण,
न सांझ भाए,
ना रात भाए, कल से यहाँ....विरह वेदना का अतिसुंदर चित्रण
आदरणीया शकुन्तला जी,
Deleteअभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
बहुत खूब पुरुषोत्तम जी | जब कोई मन का साथ आसपास ना हो तो हर चीज बेरंग और बेनूर नज़र आती है | बहुत ही मार्मिकता से मन की व्यथा को कहती सुंदर भावपूर्ण कविता | हार्दिक शुभकामनाएंऔर बधाई |
ReplyDeleteआदरणीया रेणु जी,
Deleteअभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
मन को छूती भावपूर्ण रचना ..
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा जी,
Deleteअभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया दी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण गीत।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteबेचैन मन का बहुत ही सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता जी, आपसे सतत सहयोग हेतु आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteवाह
ReplyDeleteआदरणीय जोशी जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
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