Wednesday 30 June 2021

दो रोटियाँ

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
इसलिए, वो जागता होगा!

वो भला, सो कर क्या करे!
जिन्दा, क्यूँ मरे?
जीने के लिए, 
वो शायद, जागता होगा!

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!

क्या ना कराए, दो रोटियाँ!
दर्द, सहते यहाँ!
उम्मीदें लिए,
वो शायद, जागता होगा!

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!

यूँ जिक्र में, फिक्र कल की!
जागते, छल की,
आहटें लिए,
वो शायद, जागता होगा!

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!

फिर भी, जीतने की जिद!
वही, जद्दो-जहद,
ललक लिए,
वो शायद, जागता होगा!

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!

जलाकर, उम्मीदों के दिए!
आस, तकते हुए,
चाहत लिए,
वो शायद, जागता होगा!

जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
इसलिए, वो जागता होगा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

17 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-07-2021को चर्चा – 4,112 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
  2. मार्मिक पंक्तियाँ 👌

    ReplyDelete
  3. दिल में उतरती हुई रचना

    ReplyDelete
  4. दिल को छूती रचना। दो रोटी क्या क्या करवाती है इसका बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने, पुरुषोत्तम भाई।

    ReplyDelete
  5. मर्मस्पर्शी शब्द चित्र ...

    ReplyDelete
  6. जलाकर, उम्मीदों के दिए!
    आस, तकते हुए,
    चाहत लिए,
    वो शायद, जागता होगा!

    बेहद मार्मिक सृजन... सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  7. मर्मस्पर्शी सृजन।

    ReplyDelete
  8. आँखों में जब तक सपने रहते हैं पूरा करने के चाह रहती है ... जागना पढता है उनके लिए भी और दो रोटियों के लिए भी ...
    मर्म को छूती हुयी रचना है ...

    ReplyDelete
  9. क्या ना कराए, दो रोटियाँ!!!!
    एक विपन्नता से घिरे इंसान और उससे भी बढ़कर एक गरीब बालक का स्वप्न और यथार्थ इन्ही दो रोटियों में सिमट जाता है | पुरुषोत्तम जी , लीक से हटकर इस मार्मिक सृजन के लिए निशब्द हूँ | ना जाने क्यों मन को बेध गये आपके शब्द | सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।

      Delete