Tuesday, 29 June 2021

फिर याद आए

फिर याद आए, वो सांझ के साए....

था कोई साया, जो चुपके से पास आया,
थी वही, कदमों की हल्की सी आहट,
मगन हो, झूमते पत्तियों की सरसराहट,
वो दूर, समेटे आँचल में नूर वो ही,
रुपहला गगन, मुझको रिझाए....

फिर याद आए, वो सांझ के साए....

हुआ एहसास, कि तुझसे मुक्त मैं न था,
था रिक्त जरा, मगर था यादों से भरा,
बेरहम तीर वक्त के, हो चले थे बेअसर,
ढ़ल चला था, इक, तेरे ही रंग मैं,
बेसबर, सांझ ने ही गीत गाए....

फिर याद आए, वो सांझ के साए....

ढ़लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
छोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
टाँक कर गगन पर, अनगिनत से दीये,
झांकते हो, आसमां से जमीं पर,
वो ही रौशनी, मुझको जगाए....

फिर याद आए, वो सांझ के साए....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. जाने वाले अनगिनत यादें हमारे मन में भर जाते हैं. बहुत खुबसुरत रचना.

    नई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश
    ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (३०-0६-२०२१) को
    'जी करता है किसी से मिल करके देखें'(चर्चा अंक- ४१११)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. ढ़लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
    छोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
    टाँक कर गगन पर, अनगिनत से दीये,
    झांकते हो, आसमां से जमीं पर,
    वो ही रौशनी, मुझको जगाए....

    फिर याद आए, वो सांझ के साए...
    बहुत ही प्यारी पंक्तियां

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  4. वाह ! ब्लॉग से मुड़ने वाली थी , जब ये मधुर अभिव्यक्ति , जो भावविभोर करती है, पढने को मिली |
    हुआ एहसास, कि तुझसे मुक्त मैं न था,
    था रिक्त जरा, मगर था यादों से भरा,!!
    से लेकर
    लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
    छोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
    जैसे प्रेमिल उदगार सराहना से परे हैं | मन को छू निकल गए रचना के भाव पुरुषोत्तम जी | आपकी लेखनी का प्रवाह अमर हो | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।

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