फिर याद आए, वो सांझ के साए....
था कोई साया, जो चुपके से पास आया,
थी वही, कदमों की हल्की सी आहट,
मगन हो, झूमते पत्तियों की सरसराहट,
वो दूर, समेटे आँचल में नूर वो ही,
रुपहला गगन, मुझको रिझाए....
फिर याद आए, वो सांझ के साए....
हुआ एहसास, कि तुझसे मुक्त मैं न था,
था रिक्त जरा, मगर था यादों से भरा,
बेरहम तीर वक्त के, हो चले थे बेअसर,
ढ़ल चला था, इक, तेरे ही रंग मैं,
बेसबर, सांझ ने ही गीत गाए....
फिर याद आए, वो सांझ के साए....
ढ़लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
छोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
टाँक कर गगन पर, अनगिनत से दीये,
झांकते हो, आसमां से जमीं पर,
वो ही रौशनी, मुझको जगाए....
फिर याद आए, वो सांझ के साए....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जाने वाले अनगिनत यादें हमारे मन में भर जाते हैं. बहुत खुबसुरत रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश
ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे
विनम्र आभार रोहितास जी।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (३०-0६-२०२१) को
'जी करता है किसी से मिल करके देखें'(चर्चा अंक- ४१११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteढ़लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
ReplyDeleteछोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
टाँक कर गगन पर, अनगिनत से दीये,
झांकते हो, आसमां से जमीं पर,
वो ही रौशनी, मुझको जगाए....
फिर याद आए, वो सांझ के साए...
बहुत ही प्यारी पंक्तियां
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteबहुत मधुर गीत...🙏
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteबहुत मधुर गीत...🙏
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteवाह ! ब्लॉग से मुड़ने वाली थी , जब ये मधुर अभिव्यक्ति , जो भावविभोर करती है, पढने को मिली |
ReplyDeleteहुआ एहसास, कि तुझसे मुक्त मैं न था,
था रिक्त जरा, मगर था यादों से भरा,!!
से लेकर
लते गगन संग, तुम यूँ, ढ़लते हो कहाँ,
छोड़ जाते हो, कई यादों के कारवाँ,
जैसे प्रेमिल उदगार सराहना से परे हैं | मन को छू निकल गए रचना के भाव पुरुषोत्तम जी | आपकी लेखनी का प्रवाह अमर हो | हार्दिक शुभकामनाएं|
अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।
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