निरुत्तर करती रही, उसकी निरंतरता!
यूं वर्ष, एक और बीता,
बिन थके, परस्पर बढ़ चले कदम,
शून्य में, किसी गंतव्य की ओर,
बिना, कोई ठौर!
निरंतर, एक वर्ष और!
प्रारम्भ कहां, अन्त कहां, किसे पता?
यह युग, कितना बीता,
रख कर, कितने जख्मों पे मरहम,
गहन निराशा के, कितने मोड़,
सारे, पीछे छोड़!
निरंतर, एक वर्ष और!
ढ़ूंढ़े सब, पंछी की, कलरव का पता?
पानी का, बहता सोता,
जागे से, बहती नदियों का संगम,
सागर के तट, लहरों का शोर,
गुंजित, इक मोड़!
निरंतर, एक वर्ष और!
निरुत्तर मैं खड़ा, यूं बस रहा देखता!
ज्यूं, भ्रमित कोई श्रोता,
सुनता हो, उन झरनों की सरगम,
तकता हो इक टक उस ओर,
अति-रंजित, छोर!
निरंतर, एक वर्ष और!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
निरुत्तर मैं खड़ा, यूं बस रहा देखता!
ReplyDeleteज्यूं, भ्रमित कोई श्रोता,
सुनता हो, उन झरनों की सरगम,
तकता हो इक टक उस ओर,
अति-रंजित, छोर!
निरंतर, एक वर्ष और!...गहन अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुंदर सराहनीय।
सादर
हार्दिक आभार ....
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार ....
Deleteएक वर्ष का लेखा जोखा देखा जाये तो बहुत मोड़ पीछे छुट गये हैं. भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteNew post मगर...
हार्दिक आभार ....
Deleteयह वाला साल ही नहीं, बल्कि इस से पिछले वाला साल भी तबाहियां लेकर आया था.
ReplyDeleteभगवान् करे कि अब हमारी परीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हों.
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे सबका ---
ॐ जय जगदीश हरे !
हार्दिक आभार ....
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति। नववर्ष की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteप्रारम्भ कहां, अन्त कहां, किसे पता?
ReplyDeleteयह युग, कितना बीता,
रख कर, कितने जख्मों पे मरहम,
गहन निराशा के, कितने मोड़,
सारे, पीछे छोड़!
निरंतर, एक वर्ष और!
हकीकत को बयां करती बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
हार्दिक आभार ....
Deleteवाह! शानदार।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteआदरणीया पुरुषोत्तम जी, नमस्ते!👏!
ReplyDeleteयात्रा पर रहने कोई भी नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण मैं आज रचनाओं को देख पा रहा हूँ।
आपने बीते वर्ष को इंगित कर बहुत अच्छी रचना लिखी है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
आभारी हूं आदरणीय मर्मग्य जी।
Deleteसमस्त गुणीजनों को नमन....
ReplyDeleteनिरंतर एक बर्ष और।
ReplyDeleteप्रारंभ और अंत का कुछ नहीं पता ।
सुंदर रचना एवं रचनात्मकता ।
हार्दिक आभार ....
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