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Saturday 25 December 2021

निरंतर, एक वर्ष और

निरुत्तर करती रही, उसकी निरंतरता!
यूं वर्ष, एक और बीता,
बिन थके, परस्पर बढ़ चले कदम,
शून्य में, किसी गंतव्य की ओर,
बिना, कोई ठौर!
निरंतर, एक वर्ष और!

प्रारम्भ कहां, अन्त कहां, किसे पता?
यह युग, कितना बीता,
रख कर, कितने जख्मों पे मरहम,
गहन निराशा के, कितने मोड़,
सारे, पीछे छोड़!
निरंतर, एक वर्ष और!

ढ़ूंढ़े सब, पंछी की, कलरव का पता?
पानी का, बहता सोता,
जागे से, बहती नदियों का संगम,
सागर के तट, लहरों का शोर,
गुंजित, इक मोड़!
निरंतर, एक वर्ष और!

निरुत्तर मैं खड़ा, यूं बस रहा देखता!
ज्यूं, भ्रमित कोई श्रोता,
सुनता हो, उन झरनों की सरगम,
तकता हो इक टक उस ओर,
अति-रंजित, छोर!
निरंतर, एक वर्ष और!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)