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Monday, 17 June 2019

बरसे न बदरा

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

बरसों हुए, अब-तक न भीगे!
रंग बारिशों के, है कैसे ये हमने न देखे?
कहते है, वो मेघ होते हैं पागल,
झमा-झम बरस जाएँ, न जाने ये किस पल!
पर भरोसे के, कब होते हैं बादल!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

आसमां पर, मेघों का छाना!
कल्पना है कोरी, या है ये कोई फ़साना!
सुना था, इठलाते हैं वो बादल,
यूँ कभी झूमकर, यूँ ही कहीं जाते हैं चल!
छोड़ कर पीछे, सूना सा आँचल!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

हैं अधूरे से, अपने सारे अरमाँ,
चल, ले आएं हम इक नया सा आसमां,
लहराना तुम, भींगा सा आँचल,
जरा भर लाना, नैनों में तुम, वो ही काजल!
इससे पहले, कि बिखर जाएँ हम!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Friday, 21 December 2018

दृष्टि-पथ

इस दृष्टि-पथ से, तुम हुए थे जब ओझल...

धूमिल सी हो चली थी संध्या,
थम गई थी, पागल झंझा,
शिथिल हो, झरने लगे थे रज कण,
शांत हो चले थे चंचल बादल....

इस दृष्टि-पथ से, तुम हुए थे जब ओझल...

सिमट चुकी थी रश्मि किरणें,
हत प्रभ थे, चुप थे विहग,
दिशाएं, हठात कर उठी थी किलोल,
दुष्कर प्रहर, थी बड़ी बोझिल....

इस दृष्टि-पथ से, तुम हुए थे जब ओझल...

खामोश हुई थी रजनीगन्धा,
चुप-चुप रही रातरानी,
खुशबु चुप थी, पुष्प थे गंध-विहीन,
करते गुहार, फैलाए आँचल....

इस दृष्टि-पथ से, तुम हुए थे जब ओझल...

बना रहा, इक मैं आशावान,
क्षणिक था वो प्रयाण,
किंचित फिर विहान, होना था कल,
यूँ ही तुम, लौट आओगे चल...

इस दृष्टि-पथ से, तुम हुए थे जब ओझल...

Wednesday, 27 July 2016

जरा सुनो ये धड़कनें

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

कहती हैं क्या ये पागल सी धड़कनें,
इसकी टूटी तारों को फिर छेड़ा है किसने,
काबू में क्युँ अब ना ये धड़कने,
धक-धक धड़के हैं ये क्युँ फिर कल से,
तकती हैं अब ये नजरें किस अजनबी की राहें......

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

धुन नई नवेली कब से सीखा है इसने,
किस धुन पर ये गाता कुछ तराने अनसुने,
जादू हैं कैसे इन अलबेले बोलों में,
डूबा-डूबा सा है यह किन ख्यालों में कल से,
गूँजी है अब गीत धड़कन के ये किन सदाओं में....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

अंजानी राहों में ये फिर लगा बहकने,
बहके-बहके से हैं अब हालात इस दिल के,
सुनता कब मेरी ये रोकुँ मै इसे कैसे,
कुछ भी न था पहले, ये हालात हैं बस कल से,
बहकी है क्युँ अब ये, बेकाबु है अब क्युँ ये धड़कने.....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

Sunday, 8 May 2016

मुद्दतों गुजरे अफसाने

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

छलता ही रहा हर पल मन उस छलावे में,
भटकता ही रहा हर क्षण बदन उस बहकावे में,
टूटा सा इक दर्पण निकला वो अपना सा लगता था जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

घुँघरू सा बजता था वो दिल के तहखानों में,
पहचाना सा इक शक्ल लगता था वो अन्जानों में,
टूटा है अब मेरा घुँघरू वो, इस दिल में बजता था जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

जाने कितनी बार छला है ये मन इस दुनिया में,
ये पागल दिल भूल जाता है खुद भी को मृगतृष्णा में,
टूटा है अब जाल वो छल का उलझा था इस मन में जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!