Showing posts with label अर्ध-सत्य. Show all posts
Showing posts with label अर्ध-सत्य. Show all posts

Saturday 24 July 2021

मिथक

सर्वथा, पृथक थे तुम,
पर, लोग कहते हैं, कि मिथक थे तुम!

मिथक! 
कितना आसान है, यूँ ही कह देना!
सत्य को, झुठला देना,
किसी अस्तित्व को, नकार देना,
पर वो, ईश्वर, जो सर्वथा निराकार है, 
लेकिन लिए, एक आकार है....
पृथक है, 
पर क्या, एक मिथक है?

मूलतः!
मिथक में ही, कहीं, सत्य छुपा है!
ये समय, कब रुका है?
अनन्त की गर्भ में, वो छुपा है,
बस, झांक जाता है, किसी कोर से,
बांध जाता है, इक डोर से....
पृथक है,
पर क्या, वक्त मिथक है?

उक्तियाँ!
यूँ ही नहीं बनती हैं, लोकोक्तियाँ,
गुजर जाती हैं, सदियाँ!
सँवार जाती हैं, जिन्दगानियाँ,
एक सत्य, बन जाता है, अर्ध-सत्य,
कहानियों में ढ़ली, कथ्य.....
पृथक है,
पर क्या, यह मिथक है?

काश!
पास जाते, तुम्हें सब, जान जाते,
यूँ न सबको, भरमाते,
ये साये, न तुमको ढांक पाते,
तुम थे सबसे अलग, ये जान पाते,
तेरी बातें, ये तेरी कल्पना....
पृथक है,
पर क्या, सब मिथक है?

सर्वथा, पृथक थे तुम,
पर, लोग कहते हैं, कि मिथक थे तुम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
-----------------------------------------------
मिथक संबंधित एक विडियो......आप भी देखें