बुझते दीप की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....
प्रतीत होता जिस क्षण है बिल्कुल वो पास,
पंचम स्वर में गाता पुलकित ये मन,
नृत्य भंगिमा करते अस्थिर से दोनों ये नयन,
सुख से भर उठता विह्वल सा ये मन,
लेकिन है इक मृगतृष्णा वो रहता कब है पास....
उड़ते बादल की लघु सी प्रच्छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....
क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
पागल से हो जाते तब चितवन के एहसास,
स्मृति में कौंधती है किरणों की बौछार,
लेकिन वो तो है खुश्बु सी बहती सुरभित वात..,,
क्षणिक मेघ की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात..
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....
प्रतीत होता जिस क्षण है बिल्कुल वो पास,
पंचम स्वर में गाता पुलकित ये मन,
नृत्य भंगिमा करते अस्थिर से दोनों ये नयन,
सुख से भर उठता विह्वल सा ये मन,
लेकिन है इक मृगतृष्णा वो रहता कब है पास....
उड़ते बादल की लघु सी प्रच्छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....
क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
पागल से हो जाते तब चितवन के एहसास,
स्मृति में कौंधती है किरणों की बौछार,
लेकिन वो तो है खुश्बु सी बहती सुरभित वात..,,
क्षणिक मेघ की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दीदी।
Deleteक्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
ReplyDeleteविपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
पागल से हो जाते तब चितवन के एहसास,
स्मृति में कौंधती है किरणों की बौछार,
लेकिन वो तो है खुश्बु सी बहती सुरभित वात.. ..वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय
सादर
सादर आभार आदरणीय ।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना ...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteवाह!!पुरुषोत्तम जी ,बेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteवाह वाह ! बहुत ही मोहक मधुर भावपूर्ण रचना ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteवाह बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteक्षणिक मेघ की अल्प सी छाया वो,
ReplyDeleteसाथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात..
बहुत ही बेहतरीन लाजवाब सृजन...
वाह!!!
क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
वाह वाह...
आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय सुधा देवरानी जी।
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