Saturday 27 June 2020

उम्मीद

उम्मीद!
इक यही तो, होती जा रही थी कम!
जो, न थे तुम!

डगमगाया सा, समर्पण,
टूटती निष्ठा,
द्वन्द की भँवर में, डूबे क्षण,
निराधार भय,
गहराती आशंकाओं,
के मध्य!
पनपता, एक विश्वास,
कि तुम हो,
और, लौट आओगे,
जैसे कि ये,
सावन!

उम्मीद!
इक यही तो, होती जा रही थी कम!
जो, न थे तुम!

क्षीण होती, परछाईंयाँ,
डूबते सूरज,
दूर होते, रौशनी के किनारे,
तुम्हारे जाने,
फिर, लौट न आने,
के मध्य!
छूटता हुआ, भरोसा,
बोझिल मन,
और ढ़लती हुई,
उम्मीद की,
किरण!

उम्मीद!
इक यही तो, होती जा रही थी कम!
जो, न थे तुम!

गहराते, रातों के साए,
डूबता मन,
सहमा सा, धड़कता हृदय,
अंजाना डर,
बढ़ती, ना-उम्मीदों,
के मध्य!
छूटता हुआ, विश्वास,
टूटता आस,
और मोम सरीखा,
पिघलता सा,
नयन!

उम्मीद!
इक यही तो, होती जा रही थी कम!
जो, न थे तुम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

27 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उम्मीद जिन्दा रखती हर हाल में इंसान को, यह न हो तो जिंदगी जिंदगी नहीं रहती
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  3. छूटता हुआ, विश्वास,
    टूटता आस,
    और मोम सरीखा,
    पिघलता सा,
    नयन!
    बहुत खूब ,"उम्मीद "जीवन के सारे दुखों को सहने की शक्ति। भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  5. क्षीण होती, परछाईंयाँ,
    डूबते सूरज,
    दूर होते, रौशनी के किनारे,
    तुम्हारे जाने,
    फिर, लौट न आने,
    के मध्य!
    छूटता हुआ, भरोसा,
    बोझिल मन,
    और ढ़लती हुई,
    उम्मीद की,
    किरण! बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया अनुराधा जी

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  6. आस और उम्मीद को दर्शाती हुई भावपूर्ण रचना

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  7. उम्मीद!
    इक यही तो, होती जा रही थी कम!
    जो, न थे तुम!

    क्षीण होती, परछाईंयाँ,
    डूबते सूरज,
    दूर होते, रौशनी के किनारे,
    तुम्हारे जाने,
    फिर, लौट न आने,
    के मध्य!
    छूटता हुआ, भरोसा,
    बोझिल मन,
    और ढ़लती हुई,
    उम्मीद की,
    किरण!
    वाह लाजवाब ,बहुत ही सुंदर

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  8. उम्मीद ही जीवन है।
    बहुत सुंदर रचना आदरणीय सर।
    सादर।

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    1. पुनः स्वागत है आदरणीया श्वेता जी। हार्दिक आभार व अभिनन्दन।

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  9. वाह बहुत सुंदर पुरुषोत्तम जी।
    मोम सरीखा,
    पिघलता सा,
    नयन!
    हृदय स्पर्शी,हर बार की तरह उत्तम लेखन ।

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    1. हार्दिक आभार व अभिनन्दन आदरणीयाब। शुभ प्रभात ।

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  10. उम्मीद से भरा,प्रश्नों के भंवर में डूबते -उबरते मन की करून दास्तान आदरणीय पुरुषोत्तम जी। मार्मिक लेखनजो मन को स्पर्श करताहै। हार्दिक शुभकामनायें🙏🙏

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    1. हार्दिक आभार व अभिनन्दन आदरणीयाब। शुभ प्रभात ।

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  11. भावपूर्ण रचना

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  12. https://kavitakidooniya.blogspot.com/2020/07/blog-post_53.html
    छोड़ विदेशी मालों को अब , स्वदेशी अपनाओ

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    1. बहुत ही प्रभावशाली ब्लॉग है आपका। शुक्रिया हमारे ब्लॉग पर पधारने हेतु। आभार आदरणीय ।

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  13. तुम्हारे जाने,
    फिर, लौट न आने,
    के मध्य!
    छूटता हुआ, भरोसा,
    बोझिल मन,
    और ढ़लती हुई,
    उम्मीद की,
    किरण!
    वाह पुरुषोत्तम जी | एक बार फिर पढ़ा तो सराहे बिना लौट नहीं पाई | बहुत खूब !!!!

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