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Sunday 4 April 2021

अश्क जितने

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में,
बंध न पाएंगे, परिधि में!

बन के इक लहर, छलक आते हैं ये अक्सर,
तोड़ कर बंध,
अनवरत, बह जाते है,
इन्हीं, दो नैनों में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में..

हो कोई बात, या यूँ ही बहके हों ये जज्बात, 
डूब कर संग,
अश्कों में, डुबो जाते हैं,
पल, दो पल में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

कब छलक जाएँ, भड़के, और मचल जाएँ,
बहा कर संग,
कहीं दूर, लिए जाते है,
सूने से, आंगण में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

रोके, ये रुके ना, बन्द पलकों में, ये छुपे ना,
कह कर छंद,
पलकों तले, कुछ गाते हैं,
खुशी के, क्षण में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

जज्बात कई, अश्कों से भरे ये सौगात वही,
भिगो कर संग,
अलकों तले, छुप जाते हैं,
गमों के, पल में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...
बंध न पाएंगे, परिधि में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)