Showing posts with label आकृति. Show all posts
Showing posts with label आकृति. Show all posts

Thursday 13 August 2020

पाओगे क्या

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

है कुछ भी तो, नहीं यहाँ!
हाँ, कभी इक धड़कन सी, रहती थी यहाँ,
पर, अब है, बस इक प्रतिध्वनि,
किसी के, धड़कन की,
शायद, वो ही, सुन पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

इक आकृति, थी उत्कीर्ण!
पर, अब तो शायद, वो भी हैं जीर्ण-शीर्ण,
और, सोए हों, एहसासों के तार,
भर्राए हों, दरो-दीवार,
आभाष, वो ही, कर पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

टूटे बिखरे, हों कुछ पल!
समेट लेना उनको, भर लेना तुम आँचल,
कुछ कंपन, एहसासों के, देना,
पर, उम्मीद न भरना,
कल, तुम भी, छल जाओगे!
पाओगे क्या!

इन रिक्तियों में.....

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday 5 April 2016

आकृति

कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!

कहीं खयालों में उभरी है इक तस्वीर,
कुछ धुंधली सी अबतक मानस पटल पर अंकित,
ठहरे झील में नजर आई थी वो मुस्काती,
लहर ये कैसी? कही गुम हुई वो झिलमिल आकृति।

कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!

नभ पर घटाओं में उभरी है वो तस्वीर,
पल पल रूप बदलती चंचल बादलों में मुस्काती,
लट काले घुँघराले ठिठोली बूँदों संग वो करती,
हवा ये कैसी? कही गुम हुई बिखरी नभ में वो आकृति।

कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!

मन के सूने महल में अंकित वो तस्वीर,
खाली घर की दीवारों पर उभर आती वो रंगों सी,
स्नेहिल पलकों से अपलक वो निहारती,
आहट ये कैसी? कही गुम हुई नजरों में वो आकृति!

कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!