कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
कहीं खयालों में उभरी है इक तस्वीर,
कुछ धुंधली सी अबतक मानस पटल पर अंकित,
ठहरे झील में नजर आई थी वो मुस्काती,
लहर ये कैसी? कही गुम हुई वो झिलमिल आकृति।
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
नभ पर घटाओं में उभरी है वो तस्वीर,
पल पल रूप बदलती चंचल बादलों में मुस्काती,
लट काले घुँघराले ठिठोली बूँदों संग वो करती,
हवा ये कैसी? कही गुम हुई बिखरी नभ में वो आकृति।
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
मन के सूने महल में अंकित वो तस्वीर,
खाली घर की दीवारों पर उभर आती वो रंगों सी,
स्नेहिल पलकों से अपलक वो निहारती,
आहट ये कैसी? कही गुम हुई नजरों में वो आकृति!
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
कहीं खयालों में उभरी है इक तस्वीर,
कुछ धुंधली सी अबतक मानस पटल पर अंकित,
ठहरे झील में नजर आई थी वो मुस्काती,
लहर ये कैसी? कही गुम हुई वो झिलमिल आकृति।
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
नभ पर घटाओं में उभरी है वो तस्वीर,
पल पल रूप बदलती चंचल बादलों में मुस्काती,
लट काले घुँघराले ठिठोली बूँदों संग वो करती,
हवा ये कैसी? कही गुम हुई बिखरी नभ में वो आकृति।
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
मन के सूने महल में अंकित वो तस्वीर,
खाली घर की दीवारों पर उभर आती वो रंगों सी,
स्नेहिल पलकों से अपलक वो निहारती,
आहट ये कैसी? कही गुम हुई नजरों में वो आकृति!
कहीं खयालों में कैद तस्वीर इक सलोनी सूरत की!
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