जगाएगी, उम्र भर,
इस सफर में, दे ही जाएगी वेदना!
ये संवेदना!
संवेदनाओं से विमुख, रहा कौन?
बस चीर जाती है हृदय, किसी का मौन!
तड़पा जाती है, चेतना,
यूं चुभोती इक कसक, मन के आंगना,
जगाएगी, उम्र भर,
ये संवेदना!
इस सफर में, दे ही जाएगी वेदना!
गर न हो, तेरा, हृदय एक पाषाण,
शर्म हो, खुद को कहलाने में एक इन्सान,
सो ना चुकी हो, चेतना,
बींध जाएगी, मन को, किसी की वेदना,
जगाएगी, उम्र भर,
ये संवेदना!
इस सफर में, दे ही जाएगी वेदना!
गर सुन सको, तुम, उनकी चीखें,
आह, किसी की, आ तेरे कदमों को रोके,
पड़े, यूं नींद से जागना,
अन्त:करण, देने लगे तुझको उलाहना,
जगाएगी, उम्र भर,
ये संवेदना!
इस सफर में, दे ही जाएगी वेदना!
जगाएगी, उम्र भर,
इस सफर में, दे ही जाएगी वेदना!
ये संवेदना!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)