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Monday, 25 April 2016

वो अंजान से

मैं हृदय की कहता ही रहा, वो अंजान से बने रहे सदा...

मेरे हृदय की बेमोल व्यथा कौन सुनता है यहाँ,
कितने ही अलबेले तरंग हरपल मन में पलते यहाँ,
मिथ्या सी लगती हैं सारी अनकही कहानियाँ,
कुछ इस तरह ही रही गुजरते लम्हों की मेरी दास्ताँ।

मैं हृदय की कहता ही रहा, वो अंजान से बने रहे सदा...

साँसो की वलय कितने ही इस पल को हैं मिले,
कितने ही सपनों ने आँखों में छुपकर ही दम तोड़े,
जज्बातें हरपल पिसती रही इस मन के भीतर,
कुछ इस तरह रही जिन्दगी के लम्हों की पूरी कारवाँ।

मैं हृदय की कहता ही रहा, वो अंजान से बने रहे सदा...

अब मैं हूँ और संग मेरे कठोर हो चुका मेरा हृदय,
अनकही कहानियाें की टूटी दीवारे बिखरी हुई हैं यहाँ,
लम्हा-लम्हा गुजरे वक्त का बिखरा सूना सा यहाँ,
कुछ इस तरह रही अनसुनी हृदय की अधूरी कहानियाँ।

मैं हृदय की कहता ही रहा, वो अंजान से बने रहे सदा...

Friday, 1 April 2016

कहानियाँ

जीवन के विविध जज्बातों से जन्म लेती हैं कहानियाँ।

कहानियाँ लिखी नहीं जाती है यहाँ,
बन जाती है खुद ही ये कहानियाँ,
हम ढ़ूंढ़ते हैं बस अपने आप को इनमे यहाँ,
यही तो है तमाम जिंदगी की कहानियाँ।

किरदार ही तो हैं बस हम इन कहानियों के,
रंग अलग-अलग से हैं सब किरदारों के,
कोई तोड़ता तो कोई बनाता है घर किसी के,
नायक या खलनायक बनते हम ही जिन्दगी के।

भावनाओं के विविध रूप रंग में ये सजे,
संबंधों के कच्चे रेशमी डोर में उलझे,
पल मे हसाते तो पल मे आँसुओं मे डुबोते,
मिलन और जुदाई तो बस पड़ाव कहानियों के।

आँखों मे आँसू किसी के यूँ ही नहीं छलकते,
जज्बात दिलों के कुछ कहते हैं रो रो के,
कहानियाँ कह जाती है ये व्यथा इस मन के,
खुशी और गम में ही छुपे कहानियाँ जिन्दगी के।

कहानियाँ लिखी नहीं जाती बनती है खुद ही कहानियाँ।