करोड़ों दीप, कर उठे, एक प्रण,
करोड़ों प्राण, जग उठे, आशा के क्षण,
जल उठे, सारे छल, प्रपंच,
लुप्त हुए द्वेष, क्लेश, मन के दंश,
अब ये रात क्या सताएगी?
तम की ये रात, ढ़ल ही जाएगी!
यूँ तो, सक्षम था, एक दीप मेरा,
था विश्वस्त, हटा सकता है वो अंधेरा,
जला है, ये दीप, हर द्वार पर,
है ये भारी, तम के हरेक वार पर,
अब ये रात क्या डराएगी?
विध्वंसी ये रात, ढल ही जाएगी!
अंत तक, जलेगा ये दीप मेरा,
विश्वस्त हूँ मैं, होगा कल नया सवेरा,
होंगे उजाले, ये दिल धड़केगे,
टिमटिमाते, आँखों में सपने होंगे,
अब ये राह क्या भुलाएगी?
निराशा की रात, ढ़ल ही जाएगी!
तम की ये भी रात, ढ़ल ही जाएगी!
दीपावली की अनन्त शुभकामनाओं सहित.....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा