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Saturday 4 November 2017

जलता दिल

राख! सभी हो जाते हैं जलकर यहाँ,
दिल ये है कि जला...
और उठा न कहीं भी धुँआ!

है जलने में क्या?
बैरी जग हुआ दिल जला!
चित्त चिढा,
मन को छला,
दिल जला!
कहीं आग न कहीं दिया, दिल यूँ ही बस जला!

ये धुआँ?
दिल में ही घुटता रहा,
घुट-घुट दिल जला,
बैरी खुद से हुआ,
दिल को छला,
उठता कैसे फिर धुआँ, दिल के अन्दर ये घुला!

राख ही सही!
पश्चाताप की भट्ठी पर चढा,
बस इक बार ही जला,
अंतःकरण खिला......
स्वरूप बदल निखरा,
धुआँ सा गगन में उड़ा, पुनर्जन्म लेकर खिला।

Friday 8 April 2016

खनकती हँसी

वो खनकती हँसी बहुत दिनों बाद सुन सका था मैं....!

इक हँसी जिसमें रहती थी खनखनाहट,
वो सिर्फ हँसी नहीं एहसास की खनक सी थी वो,
कई दिनों से कहीं गुम और चुप सी थी वो,
दबी हुई थी वो खनक न जाने किन दिशाओं में,
आज मुस्कुराहटों के साथ उभरी है फिर उन लबों पे।

महसूस हुई वो खनकती हँसी कुछ दबी हुई सी लबों पे!

एहसासों के मंजर कुछ बिखरे से थे हँसी में,
शायद झुलस रही थी कहीं वो समय की जलन में,
खुल के जी न पाई थी वो चुप सी लम्हों में,
दबी सी दर्द जगी थी कहीं उस हँसी की खनक में,
अब वही खनखनाहट फिर दिख रही उन धड़कनों में।

वो खनकती हँसी बहुत दिनों बाद सुन सका था मैं....!

Thursday 31 March 2016

एक मधुर कहानी का अन्त

क्या मधुर कहानी का अन्त ऐसा हीे होता है जग में?

नजदीकियाँ हद से भी ज्यादा दोनों में,
बेपनाह विश्वास पलता धा उनके हृदय में,
सीमा मर्यादाओं की लांघी थी दोनों नें,
टीस विरह की रह रह कर उठते थे मन में,
फिर भी बिछड़े-बिछड़े से थे दोनों ही जीवन में!

क्या ऐसी कहानी का अन्त ऐसा हीे होना है जग में?

आतुरता मिलने की पलती दोनो के मन में,
सपनों की नगरी ही पलती थी मन में,
विवश ज्वाला सी उठती थी रह रह कर तन में,
सुख मिलन के क्षणिक दोनों ही के जीवन में,
विरह की अगन धू-धू कर जलती फिर भी मन में!

क्या प्रेम कहानी का अन्त ऐसा हीे होना है जग में?

क्युँ मिल नहीं पाते दो प्रेमी हृदय इस जग में?
रंग प्रेम के क्यों सूखे हैं उनके जीवन में?
विरानियाँ मन के क्या लाएंगे कलरव खुशियों के?
सूखे पेड़ क्या फल पाएंगे जग के आँगन में?
गर्म हवाएँ लू सी चलती अब उनके मृदुल सीने में!

क्या प्रेमी हृदय ऐसे ही जलते हैं जग के प्रांगण में?

विष के घूँट पी रहे अब दोनो ही जीवन के,
चुभन शूल सी सहते पल पल विरह के,
कलकल सरिता से नीर बहते उनकी नैनों से,
कंपन भूचाल सी रह रह कर उठते हृदय में,
पलकें पथराईं सी आँचल भीगे भीगे अब जीवन में!

क्या मधुर कहानी का अन्त ऐसा हीे होता है जीवन में?