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Thursday, 20 December 2018

ढूंढ लें खुद को

कब तलक, बिसार दें खुद को!
चल कहीं, अमराइयों में ढूंढ लें खुद को....

मैं! न जाने मुझमें हूँ कहाँ?
इस भीड़ में, अस्तित्व मेरा है कहाँ?
तड़प है, घुटन है हर तरफ यहाँ,
इशारे, कर रही है रानाईयाँ,
चल कहीं, रानाईयों में ढूंढ लें खुद को....

कलियाँ, चटकती है जहाँ!
खुश्बू, हवाओं में बिखरती है जहाँ!
प्रशस्त साँसें, खुलती हैं जहाँ!
फैलाती हों दामन वादियां,
चल कहीं, वादियों में ढूंढ लें खुद को....

छू लेगी तन, जब मीठी पवन,
गुद-गुदाएगी तन, हलकी सी छुअन,
मिल लूंगा तब, मैैं खुद से वहाँ,
बातें चंद कर लेंगी तन्हाईयाँ,
चल कहीं, तन्हाईयों में ढूंढ लें खुद को....

मैं कहूँ! खुद की सुन सकूँ!
मन की अपने, कही कुछ पढ़ सकूँ,
लिख सकूँ, कर सकूँ कुछ बयाँ,
मैं भी खिला लूँ अमराइयाँ,
चल कहीं, अमराइयों में ढूंढ लें खुद को....

झूठ ही, कब तलक बिसार दें खुद को....