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Saturday, 23 December 2023

दरबदर

वही रास्ते, वो ही शहर,
वही दिन, वही रात, वो ही दोपहर,
न है, तो बस वो रहगुजर!

वो शोर, वो कोलाहल,
गुजरते उन कारवों का, हलाहल,
पल, वो सारे चंचल,
चल पड़े किधर!

विदा हो चले वो साए,
वो पल, वो दूर तलक जाती राहें,
वो विपरीत दिशाएं,
हो चले दरबदर!

यूं सूना, अब वो गगन,
ज्यूं, है कहीं काया कहीं धड़कन,
विरह का ये आंगन,
जगाए रात भर!

वही रास्ते, वो ही शहर,
वही दिन, वही रात, वो ही दोपहर,
न है, तो बस वो रहगुजर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)