Showing posts with label परदेश. Show all posts
Showing posts with label परदेश. Show all posts

Tuesday, 23 May 2017

यादों के परदेश से

जब शाम ढली, इक नर्म सी हवा चली,
अभिलाषा की इक नन्ही कली फिर से मन मे खिली,
जाने कैसे मन यादों में बहक गया,
सिसकी भरते अन्तर्मन का अंतर्घट तक रीत गया,
तेरी यादों का ये मौसम, तन्हा ही बीत गया....

तब जेठ हुई, इक गर्म सी हवा चली,
झुलसी मन के भीतर ही अभिलाषा की वो नन्ही कली,
जाने कैसे ये प्यासा तन दहक गया,
पर उनकी सांसो की आहट से ये सूनापन महक गया,
यादों का ये मौसम, शरद चांदनी सा चहक गया....

आस जगी, जब बर्फ सी जमी मिली,
फिर धड़कन में मुस्काई अभिलाषा की वो नन्ही कली,
जाने कैसे ये सुप्तहृदय प्रखर हुआ,
विकल प्राण विहग के गीतों से अम्बर तक गूंज गया,
यादों के परदेश से लौटा, मन का जो मीत गया....