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Saturday 12 June 2021

जिक्र आपका

फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!

झील सी, दो नीली आँखें,
झुकी, पर्वतों पर, अलसाई सी पलकें,
कजराए नैनों में, नींदों के पहरे,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा, 
बादलों का, कर लूँ!

फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!

अधखुली सी, दो पंखुड़ी,
किसी शाख पर, विहँस कर, हों पड़ी,
यूँ भींग कर, हो रही शबनमी,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा, 
गुलाबों का, कर लूँ!

फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!

आभामयी, जैसे चांदनी,
अक्स, ज्यूँ अंधेरों में, प्रदीप्त रौशनी,
जली अनवरत, दीये की नमीं,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा, 
पूजा का, कर लूँ!

फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 2 April 2016

इबादत की शिद्दत

ख्यालों में उनके है तस्वीर कोई!
मगर कौन वो? दिखती कहाँ लेकिन सूरत है उसकी?

शिद्दत तो दिखती है इबादत में उनकी,
एहसास भी कुछ भीगे से जज्बातों मे उनकी,
पर शोहबत कहाँ है हकीकत में उनकी।

उमरता हुआ इक लहर उधर दिख रहा है,
बेकरारी भी दिखती उमरते लहर की रवानियों में,
पर साहिल से मिलने की नीयत कहाँ है।

उन फूलों में दिखती है खिलने की चाहत,
खुशबु भी कुछ भीनी कोमल पंखुड़ियो में उसकी,
पर कुचली सी पूजा की चाहत है उसकी।

हो न हो, शिद्दत तो दिखती है इबादत में उनकी......!

Sunday 27 March 2016

प्रेयसी

शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!

वही स्वप्निल झील सी नीली आँखें,
मदमाई अलसाई झुकी हुई सी पलकें,
काले-काले इन नैनों में नींद के पहरे,
जिक्र बादलों का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।

शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!

वही होठ अधखुले दो पंखुड़ियाँ से,
लरजते, कांपते, शबनम की बूंदों में डूबे,
लालिमा इन पर सूरज की किरणों के,
जिक्र गुलाब का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।

शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!

वही चेहरा चांदनी में धुला आभामय,
हसीन नूर सा रेशमी अक्श मुख पर लिए,
अक्श रुहानी जैसे दीप जली मन्दिर में,
जिक्र पूजा का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।

शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!

Tuesday 2 February 2016

अधुरी पूजा उसकी

उजड़ गया संसार उसका,
बिछड़ गया एतबार जीवन का,
छूट गई हाथों से आशा की पतवार,
मन की गहराई के पार दफन हो गया,
वो छोटा सा मोहक संसार।

छोड़ गई दामन वो उसका,
देवतुल्य था जो उसके जीवन में,
टूट चुका है आज वो देव भी,
वर्जनाओं को तोड़ हाथ जिसने थामा था,
शायद वो निष्ठुर स्वार्थी ही थी,
क्षितिज पार जाने की उसको जल्दी थी,
रह गई अब शेष यादें ही।

पर उस दुखिया का भी दोष क्या,
शायद भाग्य उस देवता का ही खोटा था,
दामन उस दुखिया का भी तो लूटा था,
प्राणों से प्यारा उसके पीछे भी तो कोई छूटा था,
आराधना में उस देवतुल्य मानव की,
जीवन अर्पण कर दी थी उसने।

हे ईश्वर, देख पाऊँगा मै कैसे उस देव को,
पूजा ही जिसकी उससे रूठी हो,
लुट चुका संसार खुद उस देवता का,
जिसकी पूजा ही खंडित-खंडित हो।

(दिनांक 01.02.2016 को मेरे प्रिय विनय भैया से ईश्वर ने भाभी को छीन लिया। बचपन से मैने उस खूबसूरत जोड़ी को निहारा है और छाँव महसूस भी की। उनके विछोह से आज मन भर आया है, एक संसार आज आँखों के सामने उजाड़ हुआ बिखरा पड़ा है। हे ईश्ववर, यह लीला क्यों? यह पूजा अधूरी क्यों? यह संगीत अधूरा क्यों?)