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Sunday 3 February 2019

चलते रहो

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

अवसान हो, सांध्य काल हो,
नव-विहान हो, क्षितिज लाल हो,
धूल-धूल, गोधुलि काल हो,
रात्रि प्रहर, क्रुर काल हो,
चलते चलो, कोई ॠतुकाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

वियावान हो, या सघन जाल हों,
सामने तेरे खड़ा, कोई महाकाल हो,
राहों में कहीं, पर्वत विशाल हो,
भुज मे तेरे, ना कोई ढाल हो,
चलते चलो, कि लक्ष्य निढ़ाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

अवरोध हो, बाधा विकराल हो,
अन्तर्मन कहीं, कोई भी मलाल हो,
पथ पर, बहेलियों के जाल हो,
कठिन कितने ही, सवाल हो,
चलते चलो, पस्त तेरे न हाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Wednesday 30 December 2015

जल उठे है मशाल

जल उठे असंख्य मशाल,
शांति, ज्योति, प्रगति के,
उठ खड़े हुए अनन्त हाथ,
प्रशस्त मार्ग हुए उन्नति के।

अनन्त काल जलें मशाल,
अन्त असीम रात्रि-तम हो,
सामने हो प्रखर प्रशस्त प्रहर,
भय दूर हुए जिंदगी के।

ग्यान का उन्नत प्रकाश हो,
अशांति, अचेतन, क्लेश घटे,
धरा पे फैले चांदनी की लहर,
पू्र्ण कामना हुए मानवों के।