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Friday, 12 July 2019

किताब

बहते चिनाब से,
मिल गई, इक किताब!

उम्र, जो है अब ढ़ली,
सोचता था,
गुजर चुकी है, अब वो गली,
अब न है राफ्ता,
शायद, अब बन्द हो वो रास्ता,
पर, टूटा न था वास्ता,
रह गईं थी,
कुछ यादें, वही मखमली,
संग-संग चली,
उम्र के इस चिनाब में,
इक किताब सी,
मन में,
ढ़ली वो मिली!

बहते चिनाब से,
मिल गई, इक किताब!

बातें वही, बहा ले गई,
यादें पुरानी,
नई सी लगी, थी वो कहानी,
फिर बना राफ्ता,
पर, अब तो बन्द था वो रास्ता,
रह गया था, इक वास्ता,
वो किस्से पुराने,
यादों में ढ़ले, वो ही तराने,
अब सताने लगे,
वो पन्ने, फरफराने लगे,
बंद किताब की,
हर बात,
तड़पाती ही मिली!

बहते चिनाब से,
मिल गई, इक किताब!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा