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Thursday, 25 September 2025

व्यतीत

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....

व्यतीत, हुआ जाता हूं, पल-पल,
अतीत, हुआ जाता हूं,
फलक पर, उगता था, तारों सा रातों में,
कल तक था, सबकी आंखों में,
अब, प्रतीत हुआ जाता हूं! 

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....

कल, ये परछाईं भी संग छोड़ेगी,
हर पहलू मुंह मोड़ेगी,
सायों सा संग था, खनकता वो कल था,
सर्दीली राहों में, वो संबल था,
अब, प्रशीत हुआ जाता हूं!

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....

जाते लम्हे, फिर लौट ना आयेंगे,
कैसे अतीत लौटाएंगे,
लम्हे जो जीवंत थे, लगते वो अनन्त थे,
अंत वहीं, वो उस पल का था,
इक गीत सा ढ़ला जाता हूं!

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....

छिन जाएंगे, शेष बचे ये पहचान,
होगी शक्ल ये अंजान,
आ घेरेंगी शिकन, शख्त हो चलेंगे पहरे,
कल तक, धड़कन में कंपन था,
अब, प्रतीक बना जाता हूं!

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....

क्षण, ज्यूं क्षणभंगुर, हुआ व्यतीत,
क्षण यूं ही बना अतीत,
फलक पर, वो तारा ही कल ओझल हो,
ये आंखें सबकी भी बोझिल हों,
यूंही, प्रतीत हुआ जाता हूं! 

अतीत बन, ढ़ला जाता हूं....