Showing posts with label सजा. Show all posts
Showing posts with label सजा. Show all posts

Wednesday 6 April 2016

पिता

विलख रहा, पिता का विरक्त मन,
देख पुत्र की पीड़ा, व्यथा और जलन,
पुत्र एक ही, कुल में उस पिता के,
चोट असंख्य पुत्र ने, सहे जन्म से दर्द के।

सजा किस पाप की, मिली है उसे,
दूध के दाँत भी, निकले नही उस पुत्र के,
पिता उसका कौन? वो जानता नही!
दर्द उसके पीड़ की, पर जानता पिता वही।

दौड़ता वो पिता, उसके लिए गली गली,
साँस चैन की, पर उसे कहाँ मिली,
आस का दीप एक, जला था उस पुत्र से,
बुझने को अब दीप वो, बुझ रहा पिता वहीं।