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Wednesday 8 January 2020

जलता देश

सुलगाई चिंगारी, जलाया उसने ही देश मेरा!

ये तैमूर, बाबर, चंगेज, अंग्रेज,
लूटे थे, उसने ही देश,
ना फिर से हो, उनका प्रवेश,
हो नाकाम, वो ताकतें,
हों वो, निस्तेज!

संम्प्रभुत्व हैं हम, संम्प्रभुता ही शान मेरा,
रक्षा स्वाभिमान की, करेगा ये संविधान मेरा!

चाहे कौन? घर रहे दुश्मन,
सीमा का, उल्लंघन,
जिन्दा रहे, कोई दुस्साशन,
वो लूटे, अस्मतें देश की,
रहें, खामोश हम!

रहे सलामत देश, अधूरा है अरमान मेरा,
बचे कोई दरवेश, होगा चूर अभिमान मेरा!

जब भी बंद, रही ये आँखें,
टूटी, देश की शाखें,
जले देश-भक्त, उड़ी राखें,
रहे बस, मूरख ही हम,
बंगले ही, झांके!

भड़की फिर चिंगारी, जल उठा देश मेरा,
फिर ये मारामारी, सुलग रहा परिवेश मेरा!

शीत-लहरी, न काम आई,
ना ही, ठंढ़ी पुरवाई,
देते, समरसता की दुहाई,
सुलगते, भावनाओं की,
अंगीठी, सुलगाई!

क्यूँ नेता वो? कदमों में जिनके देश मेरा,
क्यूँ शब्द-वीर वो? क्यूँ है मेरा शब्द अधूरा?

सुलगाई चिंगारी, 
जलाया उसने ही देश मेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)