हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
स्वप्न सरीखी, अनुभूतियां,
कंपित होते, कितने ही पल,
उलझे हैं, इन आंखों पर,
ज्यूं, जागी है रात!
हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
सुलझे कब, ऐसे उलझन,
विस्मित, दो तीर, खड़ा मन,
अपना लूं, सुबह के पल,
या, मद्धिम सी रात!
हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
भ्रमित करे, ये मृगतृष्णा,
खींचे स्वप्न भरे कंपित पल,
सहलाए, भूले मन को,
हौले-हौले, ये रात!
हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
सुबह के, ये भीगे पात,
अलसाई, उंघती हर छटा,
वो नन्हीं सी, इक घटा,
कहती अधूरी बात!
हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)